Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 399
________________ १७३ 1 छक्खंडागमे वैयणाखंड [ ४, १, ७१. कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए लोगस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जा वा भागा सव्वलोगो वा । ओरालियसंघादण - परिसादणकदीए वेउब्वियतिण्णिपदेहि केवडियं खेत्तं फोसिद ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो सव्वलोगो वा । णवरि मणुसिणीसु आहारपदं णत्थि । मणुसअपज्जत्ताणं पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो । देवगदी देवे उव्वियसंघादणकदीए णारगभंगो । संघादण-परिसादणक दीए तेजाकम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठ-णवचोद्द सभागा वा देसूणा । भवणवासिय-वाणवेंतर- जोदिसियाणं वेउच्त्रियसंघादणकदीए देवभंगो । वेउव्त्रिय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अद्धट्ट-अट्ठणवचोइसभागा वा देसूणा | सोहम्मीसाणदेवाणं देवभंगो | सणक्कुमारादि जाव सहस्सारदेवाणं वेउव्वियसंघादणकदीए देवभंगो । वेउब्विय - तेजा - कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठचोद सभागा वा देसूणा | आणदादि जाव अच्चुदा त्ति वेउब्वियसंघादणकदीए देवभंगो । वेउव्विय तेजा - कम्मइयसंघादण - परिसारणकदीए लोगस्स असंखे तन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग, असंख्यात बहुभाग अथवा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। औदारिकशरीरकी संघातन परिशातनकृति तथा वैक्रियिकशरीरके तीनों पद युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है ? लोकका असंख्यातवां भाग अथवा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। विशेष इतना है कि मनुष्यनियों में आहार पद नहीं होता । मनुष्य अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्येच अपर्याप्तोंके समान है । देवगतिमें देवोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा नारकियोंके समान है । देवोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातन परिशातनकृति तथा तेजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम आठ और नौ बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा देवोंके समान है । इनमें वैक्रियिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? उक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । सौधर्म व ईशान कल्पके देवोंकी प्ररूपणा सामान्य देवोंके समान है । सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त देवोंकी प्ररूपणा सामान्य देवोंके समान है । इनमें वैक्रियिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । आनत कल्पसे लेकर अच्युत कल्प तक वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त देवोंकी प्ररूपणा सामान्य देवोंके समान है । इनमें वैक्रियिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिज्ञातन कृति युक्त जीवों द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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