Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

View full book text
Previous | Next

Page 410
________________ १, १, ७१.] कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा [ ३८३ कम्मइय-संघादण - परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एकतिण्णि- सत्त- दस- सत्तारस-बावीससागरोवमाणि समयाहियाणि । उक्कस्सेण तिण्णि-सत्त- दससत्तारस-बावीस - तेत्तीससागरोवमाणि । तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु ओरालियसंघादण संघादणपरिसादणकदी ओरालिय-वेउव्वियपरिसादणकदी ओघो । वेउव्वियसंघादणकदी णारगभंगो । संघादण - परिसा दणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । तेजा - कम्मइय संघादण - परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जद्दण्णेण खुद्दाभवग्गणं, उक्कस्सेण अनंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । पंचिंदियतिरिक्खति गम्मि ओरालिय-वेउव्वियसंघादणकदी णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । ओरालियपरिसादणकदी वेउव्वियसंघादण - परिसादणकदी तिरिक्खभंगो । ओरालियसंघादण-परिसादणकदी ओघ । तेजा -कम्मइय संघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एजजीवं पडुच्च जह कृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्रमशः एक समय अधिक एक सागर, एक समय अधिक तीन सागर, एक समय अधिक सात सागर, एक समय अधिक दस सागर, एक समय अधिक सत्तरह सागर और एक समय अधिक बाईस सागर काल है । उत्कर्षसे तीन, सात, दश, सत्तरह, बाईस और तेतीस सागरोपमः काल है । तिर्यंचगतिमें तिर्यचों में औदारिकशरीर की संघातनकृति व संघातन-परिशातन कृति तथा औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृतिकी कालप्ररूपणा ओघके समान है । वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिकी प्ररूपणा नारकियोंके समान है । वैक्रियिकशरीरकी संघातनपरिशातन कृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवको अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त काल है । तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल है । पंचेन्द्रिय तिर्यच आदिक तीन में औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे एक समय काल है । औदारिकशरीरकी परिशातनकृति और वैकियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा तिर्यचोंके समान है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है । तैजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा Jain Education International F For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498