Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 411
________________ ३८४] छक्खंडागमे वेयणाखं [.४, १, ७१. णेण खुद्दाभवग्गहणं अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण तिणि पलिदोवमाणि पुव्वकोडिपुत्तेणव्वहियाणि । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तसु ओरालियसंघादणकदी पंचिंदियतिरिक्खभंगो । संघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं समऊणं । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीव पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्त । मणुसगदीए मणुसेसु ओरालियतिण्णिपदा वेउब्वियपरिसादण-संवादणपरिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी पंचिंदियतिरिक्खभंगो । वेउब्विय-आहारसंघादणकदी णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण संखेज्जा समया। एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। आहार-तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी आहारसंघादण-परिसादणकदी ओघो। मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु ओरालिय-वेउव्विय-आहारसंघादणकदी णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण संखेज्जा समया। एगजीव पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । सेसपदाणं मणुसभंगो । णवरि तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी जहण्णेण अंतो - - जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण व अन्तर्मुहूर्त काल है, तथा उत्कर्षसे पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्य प्रमाण __ पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यचोंके समान है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण काल तथा उत्कर्षसे एक समय कम अन्तर्मुहूर्त काल है। तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीव की अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल है । मनुष्यगतिमें मनुष्यों में औदारिकशरीरके तीनों पद, वैक्रियिकशरीरकी परिशातन । संघातन-परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिकी कालप्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है। वैक्रियिक व आहारकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे एक समय काल है। आहारक, तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति तथा आहारकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है। मनुष्य पर्याप्त व मनुष्यनियोंमें औदारिक, वैक्रियिक और आहारकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे एक समय काल है। शेष पदोंकी प्ररूपणा मनुष्योंके समान है। विशेष इतना है कि तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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