Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 407
________________ छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, १, ७१. कम्मइयसंघादणपरिसादणकदीहि अट्ठचोहसभागा देसूणा । सासणसम्मादिट्ठीसु ओरालियसंघादकदी खेत्तं । ओरालियदोण्णिपद - वेउब्विय संघादण-परिसादणकंदीहि सत्तचोद्द सभागा देसूणा । वेउब्विय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीहि अट्ठ-बारहचोदसभागा देसूणा । मिच्छाइट्ठीणं असंजदभंगो | असण्णीणं तिरिक्खभंगो । आहारा अचक्खुभगो । अणाहाराण ओरालियपरिसादणकदीए केवलिभंगो | तेजा - कम्मइयद पदाणमोवो | एवं पोसणाणुगमो समत्तो । ३८०] कालानुगमेण दुविहो णिसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण ओरालियसरीर-संपादणकदी केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्ण एगसमओ । ओरालिय- वेउन्त्रियपरिसादणकदी केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ उक्कस्सेण अंतेोमुहुत्तं । ओरालियसंघादण - परिसादणकदी केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण तिष्णि पलिदोवमाणि समऊणाणि । वेउव्वियसंघा वैक्रियिक, तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिवाले जीवों द्वारा कुछ कम आठ बढे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । सासादनसभ्यदृष्टि जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणा के समान है । औदारिकशरीर के दो पद तथा वैक्रियिकशरीरकी संघातन व परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम सात बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये 1 वैक्रियिक, तेजस व कार्मणशरीरकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम आठ व कुछ कम बारह बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । मिध्यादृष्टि जीवोंकी प्ररूपणा असंयतोंके समान है । असंशी जीवोंकी प्ररूपणा तिर्यचोंके समान है । आहारक जीवोंकी प्ररूपणा अचक्षुदर्शनी जीवोंके समान है । अनाहारक जीवों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा केवलियोंके समान है । तैजस और कार्मणशरीर के दोनों पदोंकी प्ररूपणा ओघ के समान है । इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ । कालानुगमसे ओघ और आदेशकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकार है । उनमें से ओघकी अपेक्षा औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका कितना काल है ? नाना जीवों की अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्ष से एक समय काल है । औदारिक और वैक्रियिकशरीरकी परिशातन कृतिका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहुर्त काल है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक समय कम तीन पल्योपम काल है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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