Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१७८] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, १, ७१. परिसादणकदीहि वेउब्वियसंघादण-परिसादणकदीहि केवडियं खेत फोसिदं ? दिवडचोदसमांगा देसूणा । वेउव्वियसंघादणपरिसादणकदीए तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए अट्ट-णवचोद्दसभागा देसूणा । पम्मलेस्मए ओरालियसंघादणकदी आहारतिग खंत । ओरालियदोपद-वेउब्वियसंघादण-परिसादणकदीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? पंचचोहसभागा देसूणा । वेउब्वियसंघादण-परिसादणकदीए तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए अट्ठचोद्दसभागा देसूणा। सुक्कलेस्साए ओरालियसंघादणकदी आहारतिगं खेत्तं । ओरालियपरिसादणकदी ओघो। ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए वेउव्वियतिण्णिपदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? छचोदसभागा देसूणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए छचोद्दसभागा देसूणा केवलिभंगो वा ।
भवसिद्धिया ओघ । अभवसिद्धियाणमसंजदभंगो । सम्मादिट्ठीसु ओरालियसंघादण
द्वारा तथा वैक्रियिकशरीरकी संघातन व परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है ? कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भाग स्पर्श किया गया है। वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिवाले तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम आठ व कुछ कम नौ बटे चौदह भाग स्पर्श किया गया है। पद्मलेझ्यावाले जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति तथा आहारकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है । इनमें औदारिकशरीरके दो पद व वैक्रियिकशरीरकी संघातन व परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है? कुछ कम पांच बडे चौदह भाग स्पर्श किया गया है । वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति तथा तेजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकात युक्त जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं। शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति तथा आहारकशरीरके तीनों पद युक्त जीवोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति तथा वक्रियिकशरीरके तीनों पद युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है? उक्त जीवों द्वारा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । अथवा इनकी प्ररूपणा केवलियोंके समान है।
भव्यसिद्धिक जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। अभव्यसिद्धिक जीवोंकी प्ररूपणा असंयत जीवोंके समान है। सम्यग्दृष्टियोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति, आहारक
१ प्रतिषु तेउ० ' इति पाठः ।
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