Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 393
________________ छक्वंडागमे वेयणाखेर [१, १, १. एइंदियाणं तिरिक्खभंगो । बादरेइंदियाणं तेसिं पज्जत्ताणमोरालियसंघादणकदी लोगस्स संखेज्जदिभागे । सेसपदाणं तिरिक्खभंगो । एवं बादरेइंदियअपज्जत्ताणं । णवरि वेउव्वियपदं णत्थि । सुहुमेइंदियाणं तेसिं पज्जत्तापज्त्ताणं च ओरालियसंघादणकदी ओरालिय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केवडिखेत्ते? सव्वलोगे। सबविगलिंदिय-पंचिंदियअपज्जत्ताणं पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो । पंचिंदियदुगस्स मणुसभंगो । पुढवीकाइय-आउकाइय-सुहुमपुढवीकाइय-सुहुमआउकाय-सुहुमते उकाइय-सुहुमवाउकाइय-वणप्फदि-णिगोद-सुहुमवणप्फदि-सुहुमणिगोदाणं तेसिं पज्जत्तापजत्ताणं सुहुमेहंदियभंगो। पादरपुढवीकाइय-बादरआउकाइयाणं तेसिमपञ्जत्ताणं बादरतेउकाइयअपज्जत्ताणं बादरवणप्फदिपादरणिगोदाणं तेसिं पज्जत्तापज्जत्ताणं पत्तेयसरीर-तदपज्जत्ताणं च ओरालियसंघादणकदी केवडिखेत्ते? लोगस्स असंखेज्जदिमागे। सेसपदा सव्वलोगे। बादरपुढवीकाइय-बादरआउकाइय-बादरवणफदिपत्तेगसरीरपज्जत्त-तसकाइयअपज्जत्ताणं पंचिंदियअपज्जत्तभंगो । तेउ-वाउकाइयाणं तिरिक्खभंगो। बादरतेउकाइएसु ओरालियसंघादणकदी परिसादणकदी वेउब्वियतिण्णिपदा एकेन्द्रिय जीवोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। बादर एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्तों में औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव लोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं। शेष पदोंकी प्ररूपणा तिर्योंके समान है। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंके कहना चाहिये । विशेष इतना है कि उनके वैक्रियिक पद नहीं होता। सूक्ष्म एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्त-अपर्याप्तोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति और औदारिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? सब लोकमें रहते हैं। सब विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्येच अपर्याप्तोंके समान है । पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंकी प्ररूपणा मनुष्यों के समान है। पृथिवीकायिक, जलकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म तेजकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, निगोद जीव, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और सूक्ष्म निगोद जीव तथा उनके पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंकी प्ररूपणा सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंके समान है। बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक व उनके अपर्याप्त, बादर तेजकायिक अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद व उनके पर्याप्त अपर्याप्त तथा प्रत्येकशरीर व उनके अपर्याप्त जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? उक्त जीव लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। शेष पदोंसे युक्त ये सब जीव सब लोकमें रहते हैं। बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर वन. स्पतिकायिक व प्रत्येकशरीर पर्याप्त तथा प्रसकायिक अपर्याप्त जीवोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके समान है। तेजकायिक और वायुकायिक जीवोंकी प्ररूपणा तिर्यचौके समान है।बादर तेजकायिक जीवों में औदारिकशरीरकी संघातनकृति व परिशातनकृति तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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