Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ७१.] कदिवणियोगदारे करणकदिपवणा
(१९१ मदि-सुदअण्णाणीणं तिरिक्खभंगो । विभंगणाणीणं पंचिंदियतिरिक्खमंगो। णवरि ओरालियसंघादणकदी णस्थि । आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणीसु ओरालियसंघादणकदी आहारतिष्णिपदा संखेज्जा । सेसपदा असंखेज्जा । मणपज्जवणाणीसु अप्पप्पणो पदा संखेज्जा।
संजदेसु ओरालियसंघादणकदी पत्थि । सेसपदा संखेज्जा । परिहारसुद्धिसंजद. सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु दोपदा संखेज्जा । संजदासजदाणं विभंगभंगो । असंजदाणं तिरिक्खभंगो । चक्खुदंसणीणं पुरिसवेदभंगो । अचक्खुदंसणीणं कोधभंगो। आधिदसणीणं ओहिणाणिभंगो । किण्ण-णील-काउलेस्तियाण तिरिक्खभंगो । तेउ-पम्म-सुक्कलेस्सियाणं ओहिणाणिभंगो । भवसिद्धियाणं ओघ । अभवसिद्धियाणं असंजदभंगा। सम्मादिट्टि-खइयसम्मादिट्ठीण ओहिणाणिभंगो । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी अस्थि । वेदगसम्मादिट्ठीणं मोहिमंगो। उवसमसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिट्ठीणं विभंगणाणिभंगो । सासणसम्मादिट्ठीणं
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श्रुत अज्ञानियोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है । विभंगशानियोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है । विशेष इतना है कि उनके औदारिका शरीरकी संघातनकृति नहीं होती । आभिनिबोधिकशानी, श्रुतवानी मौर अवधिज्ञानियोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति और आहारकशरीरके तीनों पद युक्त जीव संख्यात हैं। शेष पद युक्त जीव असंख्यात हैं। मनःपर्ययशानियोंमें अपने अपने पद युक्त जीव संख्यात हैं।
संयत जीवों में औदारिकशरीरकी संघातनकृति नहीं होती। शेष पद युक्त जीव संख्यात हैं। परिहारशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत जीवों में दो पद युक्त जीव संख्यात हैं । संयतासंयतोंकी प्ररूपणा विभंगज्ञानियोंके समान है। असंयतोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है । चक्षुदर्शनियोंकी प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है । अचा. दर्शनियोंकी प्ररूपणा क्रोधकषायी जीवोंके समान है। अवधिदर्शनियोंकी प्ररूपणा अवधिशानियों के समान है। कृष्ण, नील व कापोत लेश्यावाले जीवोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। तेज, पद्म व शुक्ल लेश्यावाले जीवोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियों के समान है। भव्यसिद्धिक जीयोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। अभव्यसिद्धिक जीवोंकी प्ररूपणा असंयत जीवोंके समान है।
सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंकी प्ररूपणा अवधिशानियोंके समान है। विशेष इतना है कि उनके तैजस और कार्मण शरीरकी परिशातनकृति होती है। घेदक. सम्यग्दपियोंकी प्ररूपणा अवधिशानियोंके समान है। उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्याराष्टि जीवोंकी प्ररूपणा विभंगशानियोंके समान है । सासादनसम्यगपरियोकी
१ प्रतिषु संखेम्नां ' इति पाठः ।
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