Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१, १, ७१. } कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा
[३६१ आणदादि जाव अवराइदा त्ति वेउब्वियसंघादणकदी केत्तिया १ संखेज्जा । कुदो ? मणुसपज्जत्तपडिभागेण तत्थुप्पत्तीए । सेसदोपदा असंखेज्जा । सव्व? तिण्णिपदा संखेज्जा ।
एइंदियाणं बादराणं तेसिं पज्जत्ताणं च तिरिक्खभंगो । बादरेइंदियअपज्जत्ताणं सुहुमेइंदियाणं तस्सेव पज्जत्तापज्जत्ताणं ओरालियसंघादणकदी संघादण-परिसादणकदी तेजाकम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केत्तिया १ अणता । पंचिंदियदुगस्स ओरालिय-वेउन्वियतिण्णिपदा तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केत्तिया ? असंखेज्जा । सेसपदा संखेज्जा।
तेउकाइय-वाउकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवाउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जताणमोरालियवेउव्वियतिण्णिपदा तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केत्तिया ? असंखेज्जा । वणप्फदिणिगोद-बादर-सुहुमपज्जत्तापज्जत्ताणमेइंदियअपज्जत्तभंगो । तसद्गस्स पंचिंदियदुगभंगो ।
पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीणं ओरालिय-वेउवियपरिसादण-संघादणपरिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केत्तिया ? असंखेज्जा । आहारदोपदा संखेज्जा । काय
..................
आनतसे लेकर अपराजित विमान तक वैक्रियिक शरीरकी संघातनकृति युक्त जीय कितने हैं ? संख्यात हैं, क्योंकि, वहां मनुष्य पर्याप्तोंके प्रतिभागसे उत्पत्ति है । शेष दो पद युक्त जीव असंख्यात हैं । सर्वार्थसिद्धि विमानमें तीनों पद युक्त जीव संख्यात हैं।
एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्त जीवोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त तथा सूक्ष्म एकेन्द्रिय व उसके ही पर्याप्त-अपर्याप्तोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति व संघातन-परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीव कितने हैं ? उक्त जीव अनन्त हैं । पंचेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंमें औदारिक और वैक्रियिक शरीरके तीनों पद तथा तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीव कितने हैं ? उक्त जीव असंख्यात हैं। इनमें शेष पद युक्त जीव संख्यात हैं।
तेजकायिक, वायुकायिक, बादर तेजकायिक व बादर वायुकायिक तथा उनके ही पर्याप्तोंमें औदारिक व वैक्रियिक शरीरके तीनों पद तथा तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव कितने हैं ? उक्त जीव असंख्यात हैं। वनस्पतिकायिक निगोद बादर सूक्ष्म पर्याप्त व अपर्याप्त जीवोंकी प्ररूपणा एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है । त्रस व त्रस पर्याप्तोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके समान है।
पांच मनयोगी और पांच वचनयोगियों में औदारिक व वैक्रियिक शरीरकी परिशातन व संघातन-परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातलकति युक्त जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । उक्त जीवों में आहारशरीरके दो पद अर्थात् परि७. क. ४६.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org