Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 375
________________ २४८] ‘छक्खंडागमे वेयंणाखंड [१, १,७९. पंचिंदियपरिणामजोगागददिवड्डसमयपबद्धमेत्तत्तादो । उक्कस्सिया संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । दोण पि एक्कम्हि चेव ढाणे सामित्तं जादं, तदो ण विसेसाहियत्तं ? ण एस दोसो, चरिमहिदीए समऊणपुवकोडिसंचयं होदूण गवंतदव्वं परिसादणकदी णाम । तिस्से चव चारमविदीए पुवकोडिसंचिदणिसेगा संघादण-परिसादणकदी णाम । समऊणपुव्वकोडिसंचयं पेक्खिऊण संपुण्णपुवकोडिसंचओ जेण एगसमयपबद्धमेतेण अहिओ तेण विसेसाहियत्तं ण विरुज्झदे । सव्वत्थोवा वेउब्वियसरीरस्स जहणिया संघादणकदी, देवस्स णेरइयस्स वा असण्णिपच्छायदस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स पढमसमयआहारयस्स जहण्णजोगिस्स उववादजोगेगसमयपबद्धग्गहणादो । एइंदिएसु जहण्णा वे उव्वियसंघादणकदी किण्ण गहिदा ? ण, एसो पंचिंदियजहण्णउववादजोगो एइंदियपरिणामजोगादो असंखेज्जगुणहीणो ति तदग्गहणादो । द्वारा प्राप्त हुए उनका परिमाण डेढ़गुणहानिगुणित समयप्रबद्ध प्रमाण है । उससे उत्कृष्ट संघातन-परिशातनकृति विशेष अधिक है। शंका-चूंकि इन दोनों कृतियोंका एक ही स्थानमें स्वामित्व होता है, अतः संघातन-परिशातनकृति विशेषाधिक नहीं हो सकती ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अन्तिम स्थितिमें एक समय कम पर्वकोटि काल तक संचय होकर गलनेवाला द्रव्य परिशातनकृति कहलाता है। और उसी अन्तिम स्थितिमें पूर्वकोटि काल तक संचित निषेक संघातन-परिशातनकृति कह लाते हैं। अतएव एक समय कम पूर्वकोटि कालके संचयकी अपेक्षा सम्पूर्ण पूर्वकोट कालका संचय चूंकि एक समयप्रबद्ध मात्रसे अधिक है इसलिये उसके विशेष अधिक होनेमें कोई विरोध नहीं है। वैक्रियिक शरीरकी जघन्य संघातनकृति सबसे स्तोक है, क्योंकि, इसमें असंशियोमेंसे पीछे आये हुए, प्रथम समयमें तद्भवस्थ हुए, प्रथम समयवर्ती आहारक और योगसे संयुक्त ऐसे देव अथवा नारकीके उपपादयोगसे ग्रहण किये गये एक समयप्रबद्धका ग्रहण किया गया है। . शंका - एकेन्द्रियोंमें वैक्रियिक शरीरकी जघन्य संघातनकृतिका ग्रहण क्यों नहीं किया? समाधान नहीं, क्योंकि, यह पंचेन्द्रियका जघन्य उपपादयोग एकेन्द्रियके परिनामयोगसे असंख्यातगुणा हीन है, अतः वहां उसका ग्रहण नहीं किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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