Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वैयणाखंड
[१, १,७१. मणुसगदीए मणुसतियस्स ओघभंगो । णवरि मणुसिणीसु आहारपदं णत्थि । मणुसभपज्जत्ताणं तिरिक्खअपज्जत्तभंगो । एइंदियाणं बादराणं तेसिं चेव पज्जत्ताणं च तिरिक्खभंगो। बादरेइंदियअपज्जत्ताणं सुहुमाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं सबविगलिंदियाणं पंचिंदिय-तसअपज्जत्ताणं च तिरिक्खअपज्जत्तभंगो । पंचिंदियदोण्णिपदाणं' ओघभंगो । एवं , तसदुवस्स । सव्वपुढवीकाइय-सव्वआउकाइय-सव्ववणप्फदिकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवाउकाइयअपज्जत्ताणं सुहुमतेउकाइय-सुहुमवाउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं च पंचिंदियअपज्जत्तभंगो । तेउकाइय-वाउकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवाउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जताणं च एइंदियभंगो ।
पंचमणजोगीसु पंचवचिजोगीसु अत्थि ओरालिय-वेउब्धिय-आहारपरिसादणकदी संघादण-परिसादणकदी [च । संघादणकदी ] किण्ण उत्ता १ ण, संघादणकदीए कायजोगं मोत्तूण अण्णजोगाभावादो । तेजा-कम्मइयाणं संघादण-परिसादणकदी अस्थि । कायजोगीण
मनुष्यगतिमें मनुष्यत्रिकके ओघके समान प्ररूपणा है। विशेष इतना है कि मनुष्यनियों में आहारपद नहीं होता। मनुष्य अपर्याप्तकोंकी तिथंच अपर्याप्तकोंके समान प्ररूपणा है । एकेन्द्रिय, एकेन्द्रिय बादर और उनके ही पर्याप्तोंकी प्ररूपणा तिर्यचोंके समान है । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म व उनके ही पर्याप्त-अपर्याप्त, सब विकले. न्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त और अस अपर्याप्त, इन सबकी प्ररूपणा तिर्यंच अपर्याप्तोंके समान है । पंचेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। इसी प्रकार प्रस व प्रस पर्याप्तोंकी भी प्ररूपणा ओघके समान है।
सब पृथिवीकायिक, सब जलकायिक, सब वनस्पतिकायिक, बादर तेजकायिक व बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म तेजकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक और उनके ही पर्याप्त व अपर्याप्त, इनकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है । तेजकायिक, वायुकायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक और उनके ही पर्याप्तोंकी प्ररूपणा एकेन्द्रिय जीवोंके समान है।
पांच मनोयोगियों और पांच वचनयोगियोंमें औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीरकी परिशातनकृति और संघातन-परिशातनकृति होती है ।
शंका- इनके उक्त शरीरोंकी संघातनकृति क्यों नहीं कही?
समाधान- नहीं कही, क्योंकि, संघातनकृतिमें काययोगको छोड़कर दूसरा योग नहीं होता।
पांच मनोयोगी और पांच घचनयोगियोंमें तैजस और कार्मण शरीरकी संघातनपरिशातनकृति होती है।
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१ अ-आपत्योः 'पंचिं० दोणि ', काप्रती · पंचिंवियदोणि ' इति पाठः ।
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