Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 385
________________ ३५८ Srasta dantas [ ४, १, ७१. परिसादणं णत्थि । अवगदवेदाणमत्थि ओरालिय-तेजा- कम्मइयपरिसादणकदी संघादण-परि'सादणकदी च । एवमकसाइ- केवलणाणि केवलदंसणि- जहाक्खादाणं वत्तत्रं । चदुकसाईणमोघं । वरि तेजा - कम्मइयपरिसादणकदी णत्थि । मदि-सुदअण्णाणीणं तिरिक्खोवं । एवं विभंग-मणपज्जवणाणीणं । णवरि ओरालियसंघादणं णत्थि । आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणीणं कायजोगिभंगो । संजदाणमोघं । णवरि ओरालियसंघादणं णत्थि । एवं सामाइय-छेदोवडावणसुद्धिसंजाणं । वरि तेजा - कम्मइयपरिसादणं णत्थि । परिहारसुद्धिसंजद- सुहुमसां पराइयसुद्धिसंजदे अस्थि ओरालिय- तेजा - कम्मइयसंघादणपरिसादणकदी | संजदासंजदाणं मणपज्जवभंगो । असंजदाणं तिरिक्खभंगो । चक्खु दंसणि अचक्खुदंसणि ओहिदंसणीणं आभिणिबोहियभंगो । किण्ण-णील-काउलेस्सियाणं असंजदभंगो | तेउ पम्म - सुक्कलेस्सियाणं आभिणिबोहियभंगो । भवसिद्धिएस ओ | अभवसिद्धियाण असंजदभंगो । सम्माइडी खइयसम्मा कृति नहीं होती | अपगतवेदियों के औदारिक, तेजल व कार्मण शरीरकी परिशात कृति और संघातन परिशातनकृति भी होती है । इसी प्रकार अकषायी, केवलज्ञानी, केवल. दर्शनी और यथाख्यातसंयमी जीवोंके कहना चाहिये । चार कषायवाले जीवों की प्ररूपणा ओके समान है । विशेष इतना है कि उनके तैजस व कार्मण शरीरकी परिशातन कृति नहीं होती । मति व श्रुत अज्ञानियोंकी प्ररूपणा तिर्यच ओघके समान है । इसी प्रकार विभंगज्ञानी व मनः पर्ययज्ञानियोंके कहना चाहिये । विशेष इतना है कि इनके औदारिक'शरीरकी संघातनकृति नहीं होती । आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंकी प्ररूपणा काययोगियोंके समान है। संयत जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है । विशेषता इतनी है कि उनके औदारिकशरीरकी संघातनकृति नहीं होती । इसी प्रकार सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतों के कहना चाहिये । विशेष इतना है कि उनके तैजस व कार्मण शरीरकी परिशातनकृति नहीं होती । परिहारशुद्धिसंगत और सूक्ष्मसाम्पराकिशुद्धिसंयतों में औदारिक, तैजस व कार्मण शरीरकी संवातन परिशातनकृति होती है । संयतासंयत जीवों की प्ररूपणा मनः पर्ययज्ञानियोंके समान है । असंगत जीवोंकी प्ररूपणा तिर्यचोंके समान है । चदर्शनी, अवदर्शनी और अवधिदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा आभिनिबोधिकज्ञानियों के समान है । कृष्ण, नील व कापोत लेश्यावाले जीवोकी प्ररूपणा असंयत जीयोंके समान है । - तेजलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ल लेश्यावाले जीवों की प्ररूपणा आभिनिबोधिकज्ञानियाँक समान है । भव्यसिद्धिकीकी प्ररूपणा ओघके समान है । अभव्यसिद्धिकोंकी प्ररूपणा असंयत जीवोंके समान है । सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों की प्ररूपणा ओघके समान है I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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