Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, .१.] कदिअणियोगदारे करणकदिपरूवणी
[३४७ संखेज्जगुणहाणीसु गलिदासु वि दिवड्डगुणहाणिमेत्तसमयपबद्धाणं संखेज्जदिभागस्स एगताणुवड्डिजोगेगसमयपबद्धादो असंखेज्जगुणत्तदंसणादो । ओरालियस्स उपकस्सिया संघादणकदी असंखेजगुणा, सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख-मणुसपज्जत्तस्स णिरयभवपच्छायदस्स संखेजवासाउअस्स तिसमयतब्भवत्थस्स पढमसमयआहारयस्स तदित्थउक्कस्सएगताणुवड्विजोगस्स एगसमयपबद्धम्गहणादो । एइंदियपरिणामजोगेण पबद्धपरिसादणदव्वादो कधं पंचिंदियस्स एयंताणुवतिजोगेण बद्धेगसमयपबद्धस्स असंखेज्जगुणत्तं ? ण, एइंदियउक्कस्सपरिणामजोगादो वि पंचिंदियजहण्णेगंताणुवड्डिजोगस्स वि असंखेज्जगुणत्तुवलंभादो। उक्कस्सिया परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, पंचिंदियपज्जत्तमणुस्सस्स सण्णिपंचिंदियपज्जत्ततिरिक्खस्स वा पुवकोडिआउअस्स उक्कस्सजोगस्स अप्पभासा-मणद्धस्स तिचरिम-दुचरिमसमएहि उक्कस्सजोगं गदस्स सगाउद्विदिचरिमसमए उत्तरसरीरं विउव्विदस्स चरिमसमए परिसदमाणणोकम्मपोग्गलक्खंधाणं
समाधान नहीं, क्योंकि, संख्यात गुणहानियोंके गलित हो जानेपर भी डेढ़ गुणहानि प्रमाण समयप्रबद्धोंका संख्यातवां भाग एकान्तानुवृद्धियोग सम्बन्धी एक समयप्रबद्धकी अपेक्षा असंख्यातगुणा देखा जाता है।
___ उससे औदारिक शरीरकी उत्कृष्ट संघातनकृति असंख्यातगुणी है, क्योंकि, यहां जो नारक पर्यायसे पीछे आया है, संख्यात वर्षकी आयुवाला है, तीसरे समयमें तद्भवस्थ हुआ है, आहारक होनेके प्रथम समयमें स्थित है और वहांके उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योगसे संयुक्त है ऐसे संशी पंचेन्द्रिय तिर्यंच व मनुष्य पर्याप्तके एक समयप्रबद्धका ग्रहण किया है।
शंका-एकेन्द्रियके परिणामयोगसे बांधे गये परिशातनद्रव्यकी अपेक्षा पंचे. न्द्रियके पकान्तानुवृद्धियोगसे बांधा गया एक समयप्रबद्ध असंख्यातगुणा कैसे हो सकता है?
समाधान नहीं, क्योंकि, एकेन्द्रियके उत्कृष्ट परिणामयोगकी अपेक्षा भी पंचेन्द्रियका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग भी असंख्यातगुणा पाया जाता है।
उससे उत्कृष्ट परिशातनकृति असंख्यातगुणी है, क्योंकि, जो पंचेन्द्रिय पर्याप्त मनुष्य या संक्षी पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंच पूर्वकोटिकी आयुवाला है, उत्कृष्ट योगवाला है, भाषा व मनके अल्प कालसे युक्त है, त्रिचरम या द्विचरम समयमें उत्कृष्ट योगको प्राप्त हुआ है, और जिसने अपनी आयुके अन्तिम समयमें उत्तर शरीरकी विक्रिया की है सके उस समय जो नोकर्मपुद्गलस्कन्ध निर्जीर्ण होते हैं पचेन्द्रियके परिणामयोगके
१ प्रतिषु ' मणलस्स ' इति पाठः ।
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