Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१५.] . . छक्खंजगमे यणाखंड
[१,१,७१. किग्ण होदि १ ण, तत्थ मूलसरीरं पविढे वि संघडंत-गलंतपरमाणू पेक्खिदण संपादण-परिसादणं मोत्तूण परिसादणाभावादो । उक्कस्सिया संघादण-परिसादणकदी विसेसाकिया । कुदो १ आरणच्चुददेवस्स बावीससागरोवमियस्स अप्पभासा-मणद्धस्स अप्पविउव्वयस्स चरिम-दुचरिमसमए उक्कस्सजोगं गदस्स चरिमसमयभवत्थस्स चरिमसंचयग्गहणादो। णवगेवजप्पहुडि उवरिमदेवेसु उक्कस्सं किण्ण घेप्पदे १ ण, तत्थ पाएणुक्कडणाभावादो णिसेममस्सिदण असंखेज्जलोगेण खंडिदएगखंडेण अहियत्तुवलंभादो ।
* आहास्यस्स जहण्णिया संघादणकदी थोवा, उववादजोगेगसमयपबद्धमेत्तत्तादो । जहणिया संपादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । कुदो ? एगंताणुवड्डिजोगेगसमयपबद्धस्स पाहाणियादो । उक्कस्सिया संघादणकदी असंखेज्जगुणा । कुदो १ जहण्णएगंताणुवटिजोगादो माहारसरीरमुट्ठावेंतस्स उक्कस्सुववादजोगस्स असंखेज्जगुणत्तादो। जहणिया परिसादणकदी
हुए देवके उत्कृष्ट परिशातनकृति क्यों नहीं होती ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, वहां मूल शरीरमें प्रविष्ट होनेपर भी आनेवाले व गलनेवाले परमाणुओंकी अपेक्षा संघातन-परिशातनको छोड़कर केवल परिशातनका प्रभाव है।
उससे उत्कृष्ट संघातन-परिशातनकृति विशेष आधिक है, क्योंकि, इसमें जिसकी बाईस सागरकी आयु है, जिसका वचनयोग और मनोयोगमें थोड़ा काल गया है, जिसने इस कालके भीतर विक्रिया अल्प की है, जो चरम और द्विचरम समयमें उत्कृष्ट योगको प्राप्त हुआ है और जो भवके अन्तिम समयमें स्थित है उस आरण और अच्युत कल्पवासी देवके अन्त में प्राप्त होनेवाले संचयका ग्रहण किया है।
शंका-नवप्रैवेयकसे लेकर आगेके देवों में उत्कृष्ट संचयका ग्रहण क्यों नहीं करते?
समाधान-नहीं, क्योंकि, वहां प्रायः करके उत्कर्षणका अभाव है, इसलिये निषेककी अपेक्षा उसमें असंख्यात लोकका भाग देनेपर जो एक भाग प्राप्त होता है उतनी अधिकता पायी जाती है, अतः वहां उत्कृष्ट संचयका ग्रहण नहीं किया।
___आहारक शरीरकी जघन्य संघातनकृति स्तोक है, क्योंकि, वह उपपादयोगसे प्रहण किये गये एक समयप्रबद्ध प्रमाण है । उससे जघन्य संघातन-परिशासनकृति असंख्यातगुणी है, क्योंकि, यहां एकान्तानुवृद्धियोगसे ग्रहण किये गये एक समयप्रबद्धकी प्रधानता है। उससे उत्कृष्ट संघातनकृति असंख्यातगुणी है, क्योंकि, आहारक शरीरको रसन करनेवाले जीवका उत्कृष्ट उपपादयोग जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगसे असंख्यात. ....., १ प्रतिषु 'संगलंत ' इति पारः।
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