Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 379
________________ ३५२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १, ७१. देसूणपुव्वकोडिं विहरमाणस्स अट्ठवस्ससंचिदस्स णिम्मूलक्खओ किण्ण जायदे १ ण, णोकम्मस्स गुणसेडीए णिज्जराभावादो । उक्कस्सिया परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, गुणिदकम्मसियलक्खणेण छावहिसागरोवमाणि परिभमिय मणुस्सेसुप्पज्जिय अट्ठवस्साणमुवरि संजम घेत्तूण अंतोमुहत्तेण अजोगिगुणट्ठाणपढमसमए ट्ठिदस्स उक्कस्सपरिणामजोगेण बद्धदिवड्डमेत्तपंचिंदियसमयपबडुवलंभादो। उक्कस्सिया संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? मणुस्सेसु णिज्जरिददव्वमेत्तेण । ___.कम्मइयस्स जहणिया परिसादणकदी थोवा, अजोगिचरिमसमयदेसूणदिवड्डमेत्तेइंदियसमयपबद्धग्गहणादो। जहणिया संघादण-परिसादणकदी संखेज्जगुणा, चदुअघादिकम्मपोग्गलक्खंधादो सुहुमेइंदियअपज्जत्तअट्ठकम्मक्खंधस्स सादिरेयदुगुणत्तदंसणादो। उक्कस्सिया परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, गुणिदकम्मंसियलक्खणेण कम्मदिदि भमिय सत्तमपुढवीणेरइएसु उक्कस्सं करिय तत्तो उव्वट्टिय अंतोमुहुत्ताहियअट्ठवस्सेहि अजोगिपढमसमए द्विदस्स दिवड्डमेत्तपंचिंदियसमयपबढुवलंभादो। उक्कस्सिया संघादण-परिसादणकदी सादि आठ वर्ष में संचित हुए द्रव्यका निर्मूल क्षय क्यों नहीं होता है ? समाधान - नहीं, क्योंकि, नोकर्मकी गुणश्रेणि रूपसे निर्जरा नहीं होती। जघन्य परिशातनकृतिसे उत्कृष्ट परिशातनकृति असंख्यातगुणी है, क्योंकि, गुणितकर्मोशिक स्वरूपसे छयासठ सागरोपम काल तक परिभ्रमण करके मनुष्योंमें उत्पन्न हो आठ वर्ष के बाद संयमको ग्रहणकर अन्तमुहूर्त काल द्वारा अयोगी गुणस्थानको प्राप्त हो उसके प्रथम समयमें स्थित जीवके उत्कृष्ट परिणामयोगसे बद्ध पंचेन्द्रिय सम्बन्धी डेढ़ गुणहानिगुणित समयप्रबद्ध मात्र द्रव्य पाया जाता है। उससे उत्कृष्ट संघातन-परिशातनकृति विशेष अधिक है। कितने मात्रसे विशेष अधिक है ? मनुष्यों में जितना द्रव्य निजीर्ण हुआ है उतने मात्रसे अधिक है। कार्मणशरीरकी जघन्य परिशातनकृति स्तोक है, क्योंकि, इसमें अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें एकेन्द्रिय सम्बन्धी कुछ कम डेढ़ गुणहानिगुणित समयप्रबद्ध मात्र द्रव्यका प्रहण किया है । उससे जघन्य संघातन-परिशातनकृति संख्यातगुणी है, क्योंकि, चार अघातिया कर्म-पुद्गलस्कन्धोंकी अपेक्षा सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तके आठ कौके स्कन्ध दुगुणसे कुछ अधिक देखे जाते हैं । उससे उत्कृष्ट परिशातनकृति असंख्यातगुणी है, क्योंकि, गुणितकर्माशिक स्वरूपसे कर्मस्थिति काल तक भ्रमणकर सप्तम पृथिवीके नारकियोंमें गया और वहां इस द्रव्यको उत्कृष्ट करके वहांसे निकलकर अन्तमुहूर्त अधिक आठ वर्ष काल द्वारा अयोगी गुणस्थानको प्राप्त हो इसके प्रथम समयमें स्थित जीवके पंचेन्द्रिय सम्बन्धी डेढ़ गुणहानिगुणित समयप्रबद्ध मात्र द्रव्य पाया जाता है। उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only .www.jainelibrary.org

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