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३१.] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, १,६१. तरकालावलंभादो । एदं कुदो णव्वदे ? 'अणुदिसाणुत्तरदेवाणमुक्कस्संतरं बेसागरोबमाणि सादिरेयाणि' त्ति खुद्दाबंधसुत्तादो णव्वदे। ण जुत्तीए सुत्तविरुद्धाए बहुवमंतरं वोतुं सक्किज्जदे, अणवत्थापसंगादो। कधमणवत्था ? अणुदिसाणुत्तरदेवस्स मणुस्सेसुप्पज्जिय मिच्छत्तं गदस्स अद्धपोग्गलपरियट्टमेत्तरप्पसंगादों । तत्तो चुदा मिच्छत्तं ण गच्छंति त्ति उवलपोग्गलपरियट्टमेत्ततरं ण लब्भदि त्ति जदि उच्चदि तो अणुद्दिसाणुत्तरेहितो भविय पुणो तत्थुप्पज्जमाणाणं सादिरेयबेसागरोवमे मोत्तण अहिओ अंतरकालो ण लब्भदि ति सुत्तबलेण किण्ण इच्छिज्जदे । सवठ्ठसिद्धिम्हि जहण्णुक्कस्संतरं णत्थि, तत्तो च्चुदाणं पुणो तत्थुववादाभावादो।
भन्तरकाल नहीं पाया जाता। .
शंका-यह कहांसे जाना जाता है ?
समाधान-अनुदिश व अनुत्तर विमानवासी देवोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक दो सागरोपम प्रमाण है, इस क्षुद्रकबन्धके सूत्र(देखिये पु. ७, पृ. १९६) से जाना जाता है। सूत्रविरुद्ध युक्तिसे बहुत अन्तर कहना शक्य नहीं है, क्योंकि, ऐसा होनेसे अनवस्थाका प्रसंग आता है।
शंका-अनवस्था कैसे आती है ?
समाधान-अनुदिश व अनुत्तर विमानवासी देवके मनुष्यों में उत्पन्न होकर मिथ्यात्वको प्राप्त होनेपर अर्धपुद्गलपरिवर्तन मात्र अन्तरका प्रसंग आनेसे अनवस्था आती है।
शंका-अनुद्दिश व अनुत्तर विमानोंसे च्युत हुए देव चूंकि मिथ्यात्वको प्राप्त होते नहीं हैं अतः उनके उपार्धपुद्गलपरिवर्तन मात्र अन्तर नहीं प्राप्त हो सकता?
समाधान-यदि ऐसा कहते हो तो अनुहिश व अनुत्तर विमानोंसे ध्युत होकर फिरसे वहां उत्पन्न होनेपर कुछ अधिक दो सागरोपोंको छोड़कर अधिक अन्तरकाल नहीं पाया जाता, ऐसा सूत्रबलसे क्यों नहीं स्वीकार करते; यह भी उत्तर दिया जा सकता है।
सर्वार्थसिद्धि विमानमें जघन्य व उत्कृष्ट अन्तर नहीं है, क्योंकि, वहांसे व्युत जीवोंकी फिरसे वहां उत्पत्ति सम्भव नहीं है।
१ अप्रतौ — उच्चुदाणं ' इति पाठः।
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