Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ५१. कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा
___ अनुवस्सादो हेट्ठा चेव सम्मत्तं पडिवज्जदि त्ति जाणावणटं सव्वलहुं सम्मतं पडिवण्णा त्ति उत्तं । संजमं पुण अट्ठवस्सेहिंतो हेट्ठा ण होदि त्ति जाणावणमट्ठवस्सीओ संजम पडिवण्णो त्ति भणिदं । जेण तेजइयसरीरणोकम्महिदी छासहिसागरोवममेत्ता तेण बिदियं णेरइयभवम्गहणमंतोमुहुत्तूणतेत्तीससागरहिदीयमिदि वत्तव्वं । सेस सुगम ।
तेजइयसंघादण-परिसादणकदी उक्कस्सिया कस्स ? बिदियणेरइयभवग्गहणे चरिमसमयतब्भवत्थस्स उक्कस्सिया संघादण-परिसादणकदी। तव्वदिरित्ता अणुक्कस्सा । सुगमं ।
तेजइयस्स जहण्णा परिसादणकदी कस्स ? जो जीवो छावट्टिसागरावमाणि सुहमेसु अच्छिदो, तम्हि पज्जत्तापज्जत्ताणं भवग्गहणाणि करेदि, बहुवाइमपज्जत्तयाई, थोवाई पज्जत्तयाई, दीहाओ अपज्जत्तद्धाओ, रहस्साओ पज्जत्तद्धाओ, जहण्णएण जोगेण आहारिदो, जहणियाए वड्डीए वड्डिदो, जहण्णाई जोगट्ठाणाई बहुसो बहुसो गदो, उक्कस्साई ण गदो; हेहिल्लट्टिदि
आठ वर्षसे पहिले ही सम्यक्त्वको प्राप्त करता है, इस बातको जतलानेके लिये 'सर्वलघु कालमें सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है ' ऐसा कहा है। परन्तु संयम आठ वर्षके नीचे नहीं होता, इस बातेको जतलाने के लिये 'आठ वर्षका होकर संयमको प्राप्त हुआ है' ऐसा कहा है। चूंकि तैजस शरीर नोकर्मकी स्थिति छयासठ सागरोपम प्रमाण है अतः दूसरी बार नारक पर्यायका ग्रहण अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागर स्थिति प्रमाण होता है, ऐसा कहना चाहिये । शेष प्ररूपणा सुगम है।
तैजस शरीरकी उत्कृष्ट संघातन-परिशातनकृति किसके हेाती है ? दूसरी बार नारक भवके ग्रहण करनेपर उस भवमें स्थित रहने के अन्तिम समयको प्राप्त हुए जीवके तेजस शरीरकी उत्कृष्ट संघातन-परिशातनकृति होती है । इससे भिन्न अनुत्कृष्ट संघातकपरिशातनकृति है।
यह कथन सुगम है।
तैजस शरीरकी जघन्य परिशातनकृति किसके होती है ? जो जीव व्यासठ सागरोपम काल तक सूक्ष्म जीवों में रहा है और वहां रहते हुए जो पर्याप्त व अपर्याप्त भवोंको ग्रहण करता है, इनमें जिसके अपर्याप्त भव बहुत हुए हैं और पर्याप्त भव थोड़े हुए हैं, अपर्याप्त काल दीर्घ रहा है और पर्याप्त काल थोड़ा रहा है, जिसने जघन्य योगसे आहार ग्रहण किया है, जघन्य वृद्धिसे जो वृद्धिको प्राप्त हुआ है, जो जघन्य योगस्थानोको बहुत बहुत बार प्राप्त हुआ है, उत्कृष्ट योगस्थानोंको बहुत बहुत बार प्राप्त नहीं हुआ है,
१ प्रतिषु 'बासाह-' इति पाठः।
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