Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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., १, ७१.] कदिअणियोगदारे करणकदिपरूषणा जोगट्ठाणाई बहुसो बहुसो जो गदो, जहण्णाई जोगट्ठाणाई ण गदो; होहल्लीणं दिट्ठीण णिसेयस्स जहण्णपदं, उवरिल्लीण द्विदीर्ण णिसेयस्स उक्कस्सपदं; अंतोमुहुत्ते जीवियावसेसे जोगट्ठाणाणमुवरिल्ले अद्ध अंतोमुहुत्तमच्छिदो, चरिमे जीवगुणहाणिहाणंतरे आवलियाए असंखेज्जदिभागमच्छिदो, दुचरिमसमए उक्कस्सजोग गदो, सव्वलहुं जीवपदेसे णिच्छुहदि, सव्वचिरमुत्तरं विउव्विदो, तस्स पढमसमयणियत्तस्स उक्कस्सिया आहारयस्स परिसादणकदी । तव्वदिरित्ता अणुक्कस्सा । सुगमं ।
संघादण-परिसादणकदीए एसेव आलावो । णवरि चरिमसमयअणियट्टिस्स उक्कस्सजोगिस्स उक्कस्सा । तव्वदिरित्ता अणुक्कस्सा । सुगमं ।
आहारयस्स जहणिया संघादणकदी कस्स ? अण्णदरस्स संजदस्स आहारसरीरस्स पढमसमयआहारयस्स जहण्णजोगिस्स जहण्णिया आहारसंघादणकदी। तव्वदिरित्ता अजहण्णा । इदरासिं दोण्हं जहण्णकदीणं जहा वेउब्वियस्स दोण्णं जहण्णकदीणं परवणा कदा तहा कायव्वा ।
स्थानोंको बहुत बहुत वार प्राप्त हुआ है, जघन्य योगस्थानोंको नहीं प्राप्त हुआ है,अधस्तन स्थितियोंके निषेकके जघन्य पदको और उपरिम स्थितियोंके निषेकके उत्कृष्ट पदको करता है, जो आयुके अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर योगस्थानोंके उपरिम भागमें अन्तर्मुहूर्त काल तक स्थित रहा है, अन्तिम जीवगुणहानिस्थानके मध्यमें आवलोके असंख्यातवें भाग तक स्थित रहा है, द्विचरम समय में जो उत्कृष्ट योगको प्राप्त हुआ है. सर्वलघ कालमें जो जीवप्रदेशोंका निक्षेपण करता है, तथा सर्वचिर कालमें जिसने उत्तर शरीरकी विक्रिया की है, उस प्रथम समयवर्ती निवृत्तके आहारक शरीरकी उत्कृष्ट परिशातनकृति होती है। इससे भिन्न अनुत्कृष्ट संघातनकृति है।
यह कथन सुगम है। ___ संघातन-परिशातनकृतिका यही आलाप है। केवल इतनी विशेषता है कि चरमसमयवर्ती अनिवृत्ति उत्कृष्ट योगीके उत्कृष्ट आहारक शरीरकी संघातन-परिशातनकृति होती है । इससे भिन्न अनुत्कृष्ट संघातन-परिशातनकृति है ।
यह कथन सुगम है।
आहारक शरीरकी जघन्य संघातनकृतिकिसके होती है ? आहारकशरीरी अन्यतर संयतके आहारशरीर होनेके प्रथम समयमें जघन्य योग युक्त होनेपर आहारक शरीरकी जघन्य संघातनकृति होती है। इससे भिन्न अजघन्य संघातनकृति होती है। अन्य दो जघन्य कृतियोंकी प्ररूपणा, जैसे वैक्रियिक शरीरकी दो जघन्य कृतियोंकी प्ररूपणा की है, वैसे करना चाहिये।
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