Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ७१.]
कदिअणियोगहारे करणक दिपवणा
[ ११०
उब्वियसंघादणकदी । तव्वदिरित्ता अजहण्णा । असण्णिपच्छायदग्गहणं किम ? देवइस असण्णपच्छायद पाओग्गजहण्णुववाद जोगग्गहण | सेस सुगमं ।
विस जहणिया परिसादणकदी कस्स ? अण्णदरस्स बादरवाउजीवस्स । जो ' सम्वलहुं पज्जतिं गदो, सम्बलहुमुत्तरसरीरं विउव्विदो, पढमसमय उत्तरविउव्विदप्पहुडिं जहणएण जोगेण आहारिदो, जहण्णियाए वड्डीए वड्ढिदो, जहण्णाई जोगाणाई बहुसो बहुसो गदा, उक्कस्साणि ण गदो; तप्पा ओग्गजहण्णजोगो त्ति देट्ठिल्लीणं ट्ठिदीणं णिसेयस्स उक्कस्स पदमुवरिल्लीणं द्विदीणं णिसेयस्स जहण्णपदं, सव्वत्थोवं कालमुत्तरं विउव्विदो, सव्र्व्वचिरेण कालेण जीवपदे से णिच्छुहृदि, तस्स चरिमसमयअणिल्लेविदस्स जहण्णिया वेउव्वियपरिसादणकदी | तव्वदिरित्ता अजहण्णा । सुगमं ।
जघन्य वैकिंथिक शरीरकी संघातनकृति होती है। इससे भिन्न अजघन्य संघातनकृति होती है । शंका- यहां ' अशी पर्यायसे वापिस आया हुआ ' इस पदका ग्रहण किसलिये किया है ?
समाधान - जो असंज्ञी पर्यायसे वापिस आकर देव और नारकियोंमें उत्पन्न होता है उसके योग्य जघन्य उपपाद योगका ग्रहण करनेके लिये उक्त पदका ग्रहण किया है ।
शेष प्ररूपणा सुगम है ।
वैक्रियिक शरीरकी जघन्य परिशातनकृति किसके होती है ? जिस किसी बादर वायुकायिक जीवने सर्वलघु कालमें पर्याप्तिको प्राप्त किया है, सर्वलघु कालमें उत्तर शरीरकी विक्रिया की है, उत्तर शरीरकी विक्रियाके प्रथम समय से लेकर जघन्य योगसे आहार ग्रहण किया है, जघन्य वृद्धिले जो वृद्धिको प्राप्त हुआ है, जो जघन्य योगस्थानों को बहुत बहुत बार प्राप्त कर चुका है, उत्कृष्ट योगस्थानों को बहुत बहुत बार नहीं प्राप्त हुआ है, उसके योग्य जघन्य योग होनेसे जो अधस्तन स्थितियोंके निषेकक उत्कृष्ट पदको और उपरिम स्थितियोंके निषेकके जघन्य पदको करता है, अति स्वल्प काल तक जिसने उत्तर शरीरकी विक्रिया की है तथा जो सर्वचिर कालसे जीवप्रदेशों का निक्षेपण करता है, उस चरम समय अनिर्लेपितके वैक्रियिकशरीरकी जघन्य परिशातन कृति होती है। उससे भिन्न अजघन्य परिशातनकृति है ।
यह कथन सुगम है ।
छ. क ४३.
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१ अप्रतौ ' -जीवस्स वा जो ' इति पाठः ।
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