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१९८] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, १, ७०. तिरिक्ख-मणुस्सेसु वेउव्वियसरीरं, एदेसु वेउव्वियसरीरणामकम्मोदयाभावाद।। किंतु दुविहमोरालियसरीरं विउव्वणप्पयमविउव्वणप्पयमिदि । तत्थ विउव्वण्णप्पयं जमोरालियसरीरं तं वेउव्वियमिदि एत्थ घेत्तव्वं ।
आहारसरीरमुट्ठाविदपढमसमए आहारसरीरसंघादणकदी, तत्थ तक्खंधाणं परिसदणाभावादो । तत्तो उवरि संघादण-परिसादणकदी होदि, आगम-णिज्जराणं तत्थुवलंभादो । मूलसरीरं पविढे परिसादणकदी, तत्थागमाभावादो । एवं तिण्णं सरीराणं तिण्णि तिण्णि कदीओ परूविदाओ । एदाओ सव्वाओ ओरालिय-वेउव्विय-आहारसरीरमूलकरणकदीओ त्ति भणत्ति ।
जा सा तेजा-कम्मइयसरीरमूलकरणकदी णाम सा दुविहापरिसादणकदी संघादण-परिसादणकदी चेदि । सा सव्वा तेजा-कम्मइयसरीरमूलकरणकदी णाम ॥ ७० ॥
अजोगिम्मि जोगाभावण बंधाभावादो एदासिं दोणं सरीराणं परिसादणकदी होदि । अण्णत्थ सव्वत्थ वि तदुभयकदी चेव संसारे सव्वत्थ एदासिं आगम-णिज्जरुवलंभादो ।
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समाधान-तिर्यंच व मनुष्योंके वैक्रियिकशरीर सम्भव नहीं है, क्योंकि, इनके वैक्रियिकशरीरनामकर्मका उदय नहीं पाया जाता। किन्तु औदारिकशरीर विक्रियात्मक और अविक्रियात्मकके भेदसे दो प्रकारका है। उनमें जो विक्रियात्मक औदारिकशरीर है उसे यहां वैक्रियिक रूपसे ग्रहण करना चाहिये।
आहारकशरीरको उत्पन्न करने के प्रथम समयमें आहारकशरीरकी संघातनकृति होती है, क्योंकि, उस समय उक्त शरीरके परिशातनका अभाव है। इससे कारके समयों में संघातन-परिशातनकृति होती है, क्योंकि, उस समय उक्त शरीरके स्कन्धोंका आगमन और निर्जरा दोनों पाये जाते हैं। मलशरीरमें प्रविष्ट होनेपर आहारकशरीरकी परिशातनात होती है, क्योंकि, उस समय उक्त शरीरस्कन्धोंका आगमन नहीं होता।
इस प्रकार तीन शरीरोंके तीन तीन कृतियां कही गई हैं। ये सब औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर मूलकरणकृतियां कही जाती हैं।
तैजसशरीर और कार्मणशरीर मूलकरणकृति दो प्रकारकी है- परिशातनकृति और संघातन-परिशातनकृति । यह सब तैजसशरीर और कार्मणशरीर मूलकरणकृति है ॥ ७० ॥
अयोगकेवलीके योगका अभाव हो जानेके कारण बन्ध नहीं होता, इसलिये इनके इन दो शरीरोंकी परिशातनकृति होती है। तथा अन्य सब जगह उक्त दोनों शरीरोंकी संघातन-परिशातनकृति ही होती है, क्योंकि, संसारमें सर्वत्र उनका आगमन और निर्जरा
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