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१, १, ७१.] कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा [३३१ तपाओग्गजहण्णजोगी बहुसे। बहुसो ण होदि; जस्स हेडिल्लीणं हिदीणं णिसेयस्स जहण्णपदं, उवरिल्लीण हिदीणं णिसेयस्स उक्कस्सपदं, अंतरे ण विउव्विदो, अंतरे छविच्छेदो' ण उप्पाइदो, अप्पाओ' भासद्धाओ, अप्पाओ मणअद्धाओ, रहस्साओ भासद्धाओ, रहस्साओ मणअद्धाओ, अंतोमुहुत्ते जीविदावसेसे जोगट्ठाणाणमुवरिल्ले अद्ध अंतोमुहुत्तमच्छिदो, चरिमे जीवगुणहाणिट्ठाणतरे आवलियाए असंखेज्जदिभागमाच्छिदो', तिचरिम दुचरिमसमए उक्कस्सजोगं गदो, चरिमसमए उत्तरसरीरं विउव्विदो, तस्स पढमसमयउत्तरविउव्विदस्स उक्कस्सजोगिस्स उक्कस्सिया परिसादणकदी । तव्वदिरित्ता अणुक्कस्सा ।
तिण्णिपलिदोवमाउअं मोत्तूग किमट्ठ पुवकोडिआउएसु सामित्तं दिणं ? ण एस दोसो, णेरइएहितो आगदस्स भोगभूमिसु उप्पत्तीए अमावादो । ण च णिरयभवपञ्चयदं मोत्तूण अण्णत्थ ओरालियसरीरस्स उक्कस्ससंचओ होदि, अण्णत्थ सुहेण जीविदस्स तिरिक्ख
योगी बहुत बहुत बार होता है, तत्प्रायोग्य जघन्ययोगी बहुत बहुत बार नहीं होता; जिसके अधस्तन स्थितियों के निषेकका जघन्य पद होता है और उपरिम स्थितियों के निषेकका उत्कृष्ट पद होता है, जो मध्य कालमें विक्रियाको प्राप्त नहीं होता, जिसने मध्य कालमें शरीरका छेद नहीं किया है, जिसका भाषाकाल स्तोक है, मनोयोगकाल स्तोक है, भाषाकाल ह्रस्व है, मनोयोगकाल ह्रस्व है, जो जीवितके अन्तर्मुहूर्त मात्र शेष रहने पर योगस्थानोंके उपरिम भागमें अन्तर्मुहूर्त काल तक स्थित है, जो अन्तिम जीवगुणहानिस्थानके मध्यमें आवलीके असंख्यातवें भाग काल तक स्थित है, त्रिचरम और द्विचरम समयमें जो उत्कृष्ट योगको प्राप्त हुआ है तथा जो अन्तिम समयमें उत्तर शरीरकी विक्रिया करता है; उसके उत्तर शरीरकी विक्रिया करने के प्रयम समयमें उत्कृष्ट योगयुक्त होनेपर उत्कृष्ट परिशातनकृति होती है। उससे भिन्न अनुत्कृष्ट परिशातनकृति होती है।
शंका-तीन पल्योपम प्रमाण आयुवाले तिर्यंच व मनुष्यको छोड़कर पूर्वकोटि मात्र आयुवालों में स्वामित्व किस लिये दिया है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, नारकियोमैसे आये हुए जीवकी भोगभूमियों में उत्पत्ति नहीं होती है। यदि कहा जाय कि नारक भवनिभितक पर्यायके सिवा अन्यत्र औदारिक शरीरका उत्कृष्ट संचय हो जायगा सो भी बात नहीं है, क्योंकि, अन्यत्र सुखपूर्वक जीवन विताकर जो जीव तिर्यच व मनुष्योंमें उत्पन्न होता है उसके
१वी सरीर, तस्स ...किरियाविससहि खंडणं छेदो णाम | धवला पत्र १०४० सरसावा. २ प्रतिषु उप्पाइदी अप्पाबहुसद्धाओ अप्पाओ' इति पाठः।। ३ प्रतिषु ' जोगद्धाणाण- ' इति पाठः। ४ प्रतिषु भागमुरिल्ले अद्धे अच्छिदो' इति पाठः ।
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