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१, १, ६७.] कदिअणियोगदारे गंथकदिपरूवणा
[३२१ संपहि इंदियमग्गणाए वुच्चदे । तं जहा- सव्वत्थोवा चउरिंदिया णोकदिसंचिदा। अवत्तव्वसंचिदा विसेसाहिया । तेइंदिया णोकदिसंचिदा विसेसाहिया । अवत्तव्वसंचिदा विसेसाहिया । बेइंदिया णोकदिसंचिदा विसेसाहिया । अवत्तव्वसंचिदा विसेसाहिया । पंचिंदिया णोकदिसंचिदा असंखेज्जगुणा, असंखेज्जवाससंचिदत्तादो । अवत्तव्वसंचिदा विसेसाहिया । कदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । चउरिदिया कदिसंचिदा विसेसाहिया । तेइंदिया कदिसंचिदा विसेसाहिया । बेइंदिया कदिसचिदा विसेसाहिया । एइंदिया णोकदिसंचिदा अणतगुणा । अवत्तब्वसंचिदा विसेसाहिया । कदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । एवं जे जहा भवंति ते तहा णेदव्वा । एवं गणणकदी समत्ता ।
+ जा सा गंथकदी णाम सा लोए वेदे समए सद्दपबंधणा अक्खरकव्वादीणं जा च गंथरचणा कीरदे सा सव्वा गंथकदी णाम ॥६७॥ ...........................................
अब इन्द्रिय मार्गणामें अल्पबहुत्व कहते हैं। वह इस प्रकार है-चतुरिन्द्रिय नोकृतिसंचित सबसे स्तोक हैं । इनसे अवक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं । इनसे त्रीन्द्रिय नोकृतिसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे अवक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं । इनसे द्वीन्द्रिय नोकृतिसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे अबक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे पंचेन्द्रिय नोकृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे असंख्यात वर्षों में संचित हैं । इनसे अव. क्तव्यसंचित पंचेन्द्रिय विशेष अधिक हैं । इनसे कृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं । इनसे चतुरिन्द्रिय कृतिसंचित विशेष अधिक हैं । इनसे त्रीन्द्रिय कृतिसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे द्वीन्द्रिय कृतिसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे एकेन्द्रिय नोकृतिसंचित अनन्तगुणे हैं । इनसे अवक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं । इनसे कृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं। इस प्रकार जो जिस प्रकार होते हैं उन्हें उसी प्रकार ले जाना चाहिये ।
इस प्रकार गणनकृति समाप्त हुई।
जो वह ग्रन्थकृति है वह लोकमें, वेदमें व समयमें शब्दसन्दर्भ रूप अक्षरात्मक काव्यादिकोंके द्वारा जो ग्रन्थरचना की जाती है वह सब ग्रन्थकृति कहलाती है ॥ ६७ ॥
१ अप्रतौ । चउरिदिया कदि. पंचिंदिया विसेसाहिया', आप्रती'चउरिदिया कदि. संचिंदिया विसेसाहिया ' इति पाठः।
७.क.४१.
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