Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३०६]
छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, १, ६६.
जहणंतरं होदि । कुदो ? सणक्कुमार-माहिंददेवेहिंतो तिरिक्ख-मणुस्सेसु गन्भोवतिएसु उपज्जिय मुहुत्तपुधत्तमच्छिय आउअं बंधिय सणक्कुमार - माहिंददेवेसु पुणो उप्पण्णस्स मुहुत्तपुघत्तमेत्तंतरुवलंभादो । एदम्हादो थोवमंतरं किण्ण लब्भदे ? ण, सणक्कुमार-माहिंददेवाणं तिरिक्ख-मणुसग भोवक्कंतिएसु आउअं बंधताणं मुहुत्तपुधत्तादो हेट्ठा बंधाभावादो । भुंजमाणाउअं' घादिय मुहुत्तपुधत्तादो हेट्ठा काढूण घादियसेसं जीविय सणक्कुमार- माहिंदेसु उप्पण्णस्स जहणंतरं किण्ण कीरदे ? ण, देवेहि बद्धाउअस्स घादाभावादो । एस अत्थो उवरि सम्वत्थ वत्तव्वो । बम्हबम्होत्तर- लंतवकाविट्ठदेवेसु जहण्णाउअबंधो दिवसपुधत्तं । सुक्क महासुक्क - सदर-सहस्सारकप्पेसु पक्खपुधत्तं । आणद- पाणद - आरणच्चुदकप्पेसु मासपुघत्तं । णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु वासपुधत्तं । अणुदिसादि जाव अवराइदे त्ति वासपुधत्तं । दाणि जहण्णायुगाणि बंधिय तिरिक्ख- मणुस्से सुप्पज्जिय अप्पिददेवेसु उप्पण्णाणं जहणमंतरं
मुहूर्त पृथक्त्व मात्र होता है, क्योंकि, सनत्कुमार- माहेन्द्र देवोंमेंसे गर्भोपकान्तिक तिर्यच व मनुष्योंमें उत्पन्न होकर मुहूर्तपृथक्त्व काल रहकर आयुको बांधकर पुनः सनत्कुमारमाहेन्द्र देवोंमें उत्पन्न हुए जीवके मुहूर्त पृथक्त्व मात्र अन्तर पाया जाता है ।
शंका- इससे स्तोक अन्तर क्यों नहीं पाया जाता ?
समाधान -- नहीं, क्योंकि, तिर्येच व मनुष्य गर्भोपक्रान्तिकोंमें आयुको बांधनेवाले सनत्कुमार- माहेन्द्र देवोंके मुहूर्तपृथक्त्वसे नीचे आयुका बन्ध नहीं होता ।
शंका - भुज्यमान आयुका घात करके मुहूर्त पृथक्त्व से नीचे कर घातनेसे शेष रही आयुके प्रमाण जीवित रहकर सनत्कुमार- माहेन्द्र देवोंमें उत्पन्न हुए जीवके जघन्य अन्तर क्यों नहीं किया जाता ?
समाधान -- नहीं, क्योंकि, देवों द्वारा बांधी गई आयुका घात नहीं होता । यह अर्थ आगे सब जगह कहना चाहिये ।
ब्रह्म ब्रह्मोत्तर और लान्तव कापिष्ठ देवोंमें जघन्य आयुका बन्ध दिवस पृथक्त्व मात्र होता है। शुक्र महाशुक्र और शतार- सहस्रार कल्पोंमें जघन्य आयुका बन्ध पक्षपृथक्त्व मात्र होता । आनत-प्राणत और आरण- अच्युत कल्पोंमें जघन्य आयुका बन्ध मासपृथक्त्व मात्र होता है। नौ ग्रैवेयक विमानवासी देवोंमें जघन्य आयुका बन्ध वर्षपृथक्त्व मात्र होता है । अनुदिशों से लेकर अपराजित विमानवासी देवोंमें जघन्य आयुका बन्ध वर्षपृथक्त्व मात्र होता है। इन जघन्य आयुओंको बांधकर तिर्यच व मनुष्योंमें उत्पन्न होकर पुनः विवक्षित देवोंमें उत्पन्न हुए जीवोंके जघन्य अन्तर होता है । विशेषता इतनी है कि
१ प्रतिषु 'मंजमाणाउअं ' इति पाठः ।
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