Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१, १, ६६.] कदिअणियोगद्दारे अंतराणुगमो
[३०५ दियतिरिक्खअपज्जत्ताणं तिण्णिपदाणं अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । होदु एदमंतरं पंचिंदियतिरिक्खाणं, ण तिरिक्खाणं; सेसतिगहिदीए आणंतियाभावादो? ण, अप्पिदपदजीवं सेसतिगदीसु हिंडाविय अणप्पिदपदेण तिरिक्खेसु पवेसिय तत्थ अणंतकालमच्छिय णिप्पिदिदूण पुणो अप्पिदपदेण तिरिक्खेसुवक्कंतस्स अणतंतरुवलंभादो ।
एवं मणुसतिय-सव्वविगलिंदिय-सव्वपंचिंदियाणं च वत्तव्वमविसेसादो । मणुसअपज्जत्तेसु तिण्णिपदाणमंतर केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अणंतकालमसखेज्जपोग्गलपरियढें ।
देवगदीए देवाणं भवणवासिय-वाणवेंतर-जोदिसियदेवाणं सोहम्मीसाणाणं च णारगभंगो । एवं सणक्कुमार-माहिंददेवाणं पि अंतरं परूवेदव्वं । णवरि मुहुत्तपुधत्तमेत्तमेत्थ
वालोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक होता है।
शंका-यह अन्तर पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंका भले ही हो, किन्तु यह सामान्य तिर्यंचोंका नहीं हो सकता; क्योंकि, शेष तीन गतियोंका काल अनन्त नहीं है?
समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि, विवक्षित पद (कृतिसंचित आदि) वाले जीवको शेष तीन गतियोंमें घुमाकर अविवक्षित पदसे तिर्यंचों में प्रवेश कराकर वहां अनन्त काल रह कर और फिर निकल कर विवक्षित पदसे तिर्यंचोंमें उत्पन्न होनेपर अनन्त काल अन्तर पाया जाता है।
इसी प्रकार मनुष्य आदि तीन, सब विकलेन्द्रिय और सब पंचेन्द्रियोंके भी कहना चाहिये, क्योंकि, इनके उनसे कोई विशेषता नहीं हैं। मनुष्य अपर्याप्तों में तीनों पदवालोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग अन्तर होता है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल अन्तर होता है।
देवगतिमें देवों, भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिषी देवों और सौधर्म-ईशान कल्पके देवोंकी अन्तरप्ररूपणा नारकियोंके समान है। इसी प्रकार सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पके देवोंके भी अन्तरकी प्ररूपणा करना चाहिये । विशेषता इतनी है कि इनमें जघन्य अन्तर ..क. ३९.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org