Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३१४ छक्खंडागमे वैयणाखंड
[४, १, १५. जात्यन्तराम्यामादिष्टो वक्तव्यः। रूपघटो रुपघटरूपेणास्ति, न रसादिघटरूपेण । ताभ्यामक्रमेणादिष्टः अवक्तव्यः । एवं रसादिघटानामपि योज्यम् । रक्तघटो रक्तघटरूपेणास्ति, न कृष्णादिघटरूपेण, तथाप्रतिभासाभावात् । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवा नवघटो नवघटरूपेणास्ति, न पुराणादिघटरूपेण, अवस्थासांकर्यप्रसंगात् । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । एवं पुराणादिघटनामपि योज्यम् । अथवा अर्पितसंस्थानघटः अस्ति स्वरूपेण, नानर्पितसंस्थानघटरूपेण, विरोधात् । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवार्पितक्षेत्रवृत्तिर्घटोऽस्ति स्वरूपेण, नानपितक्षेत्रवृत्तटैः', अनुपलम्भात् । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवा पर्यायघटः पर्यायघटरूपेणास्ति, न द्रव्यघटरूपेण घटप्रत्ययाभिधान-व्यवहाराहेतुपर्यायघटरूपेण च । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवा तत्परिणतरूपेणास्ति घटः, न नामादिघटरूपेण । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः। अथवा घटपर्यायेणास्ति घटः, न पिण्ड-कपालादिप्राक्-प्रध्वंसाभावैः
उन विधिवनिषेध रूपधर्मोसे कहा गया घट अवक्तव्य है। रूपघट रूपघट स्वरूपसे है,रसादि घट रूपसे नहीं है। उन दोनों धर्मोंसे एक साथ कहा गया घट अवक्तव्य है। इसी प्रकार रसादि घटोके भी कहना चाहिये। रक्तघट रक्तघटरूपसे है, कृष्णादिघट रूपसे नहीं है, क्योंकि, वैसा प्रतिभास नहीं होता। उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा नवीन घट नवीन घट स्वरूपसे है, पुराने आदि घट स्वरूपसे नहीं है, क्योंकि, अन्यथा दोनो (नवीन व पुरानी) अवस्थाओंके सांकर्यका प्रसंग आता है। उन दोनोंकी अपेक्षा युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है । इसी प्रकार पुराने आदि घटोंके भी कहना चाहिये। अथवा विवक्षित आकार युक्त घट स्वरूपसे है, अविवक्षित आकार युक्त घट रूपसे नहीं है। क्योंकि, ऐसा होनेमें विरोध है । उन दोनोंकी अपेक्षा युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है ।
अथवा विवक्षित क्षेत्रमें रहनेवाला घट अपने स्वरूपसे है, अविवक्षित क्षेत्रमें रहनेवाले घटोकी अपेक्षा वह नहीं है। क्योंकि, उस रूपसे वह पाया नहीं जाता। उन दोनोंसे एक साथ कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा पर्यायघट पर्यायघट रूपसे है, द्रव्यघट रूपसे और 'घट' इस प्रकारके प्रत्यय एवं 'घट' इस शब्दके व्यवहारके अहेतुभूत पर्यायघट रूपसे भी वह नहीं है। उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा घट रूप पर्यायसे परिणत स्वरूपसे घट है, नामादि घट रूपसे वह नहीं है। उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा घटपर्यायसे घट है, प्रागभाव रूप पिण्ड और प्रध्वंसाभाव रूप कपाल पर्यायसे वह नहीं है; क्योंकि, वैसा होनेमें विरोध है। उन दोनोंसे युग
अ-आप्रत्योः ‘-क्षेत्रवृत्तेर्घटः अनुप-'; काप्रती 'क्षेत्रवृत्तेर्घटैरनुप-' इति पाठः ।
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