Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ६६.] कदिअणियोगदारे कालाणुगमो.
[२९. णवरि केवलिभंगो णस्थि । सम्मादिट्ठि-खइयसम्मादिट्ठीसु कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदेहि लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्टचोदसभागा केवलिभंगो वा । वेदगसम्मादिट्ठि-उवसमसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठीहि लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठचोद्दसभागा वा [देसूणा] । सासणसम्मादिट्ठीहि [लोगस्स असंखेज्जदिभागो ] अट्ठ-बारहचोद्दसभागा वा देसूणा । सण्णीणं पुरिसवेदभंगो । आहारि-अणाहारीण खेत्तभंगो । एवं फोसणाणुगमो समत्तो।
कालाणुगमेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइया कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीव पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण दसवाससहस्साणि, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि । एवं पढमाए [ पुढवीए ] । णवरि एगजीवं पडुच्च उक्कस्सेण सागरोवमं । विदियादि जाव सत्तमि ति णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडच्च जहण्णेणेक्क-तिण्णि-सत्त-दस-सत्तारस-बावीससागरोवमाणि समयाहियाणि, उक्कस्सेण तिण्णि-सत्त-दस-सत्तारस-बावीस-तेत्तीससागरोवमाणि संपुण्णाणि ।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खा तिपदा केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुन्च
भंग नहीं है । सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें कृति, नोकृति और अवक्तव्य संचित जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं; अथवा इनकी प्ररूपणा केवलियोंके समान है। वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्याष्टियोंमें उक्त तीन पदों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा [कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा [लोकका असंख्यातवां भाग] अथवा कुछ कम आठ व बारह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । संशी जीवोंकी प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है। आहारी व अनाहारी जीवोंकी प्ररूपणा क्षेत्रके समान है। इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ।
कालानुगमसे गतिमार्गणानुसार नरकगतिमें नारकी कृति, नोकृति व अवक्तव्यसंचित कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा वे सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे दश हजार वर्ष और उत्कर्षसे तेतीस सागरोपम काल तक रहते हैं। इसी प्रकार प्रथम पृथिवीमें कहना चाहिये विशेष इतना है कि वहां एक जीवकी अपेक्षा उत्कर्षसे एक सागरोपम काल तक रहते हैं। द्वितीयसे लेकर सप्तम पृथिवी तक नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्रमशः एक समय अधिक एक, तीन, सात, दश, सत्तरह और बाईस सागरोपम, तथा उत्कर्षसे सम्पूर्ण तीन, सात, दश, सत्सरह, बाईस और तेतीस सागरोपम काल तक रहते है ।
तिर्यंचगतिम कृतिसंचितं आदि तीन पंदवाले तिर्यंच कितने कालं तक रहते
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