Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२९ ।
छक्खंडागमे वेयणाख एइंदियाणं तिरिक्खभंगो। बादरेइंदिया कदिसंचिदा केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ। बादरेइंदियपज्जत्ता कदिसंचिदा केवचिरं कालादो हॉति १ णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्त, उक्कस्सेण संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । तेसिं चेव अपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सण अंतोमुहुत्तं । सुहुमेइंदिया णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा। तेसिं चेव पज्जत्ता केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुतं । तेसिं चेव अपज्जत्ता णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया तेसिं चेव पज्जत्ता तिण्णिपदा णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण संखेज्जाणि वस्स सहस्साणि । तेसिं चेव अपज्जत्ता तिण्णिपदा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं
एकेन्द्रियोंकी प्ररूपणा तिर्यंच जीवोंके समान है। बादर एकेन्द्रिय कृतिसंचित कितने काल तक रहते हैं । नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र असंख्यात उत्सर्पिणीअवसर्पिणी प्रमाण रहते हैं। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त कृतिसंचित कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त
और उत्कर्षसे संख्यात हजार वर्ष तक रहते हैं। उनके ही अपर्याप्त कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे असंख्यात लोक प्रमाण काल तक रहते हैं। उनके ही पर्याप्त जीव कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहर्त तक रहते हैं। उनके ही अपर्याप्त नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुदभवग्रहण और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं। दीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व उनके ही पर्याप्त जीव तीनों पदवाले नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण मात्र अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे संख्यात हजार वर्ष तक रहते हैं। उनके ही अपर्याप्त तीनों पदवाले कितने
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