Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ६६.1 कदिअणियोगहारे कालाणुगमौ
। ३०१ कप्पेसु एदेसिं पमाणमेदं ।९०० ।
एगं पोग्गलपरियटिं ठविय आवलियाए असंखेज्जदिभागेण गुणिदे णqसयवेदुक्कस्सद्विदी होदि । अवगदवेदा तिण्णिपदा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा ।
चत्तारिकसायाण मणजोगिभंगो'। अकसायाणमवगदवेदभंगो । मदि-सुदअण्णाणितिण्णिपदा केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमहुत्तं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्ट देसूणं । विभंगणाणितिण्णिपदा णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि । आभिणिवोहिय-सुद-ओहिणाणितिण्णिपदा णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्त, उक्कस्सेण छावहिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । मणपज्जवणाणीसु तिण्णि
कल्पों में इनका प्रमाण यह है --- असुर. १४३= ३, स्वर्ग २४६= १२, ७ ४६= ४२, १० x ६ = ६०, १४ x ६ = ८४, १६ x ६ = ९६, १८४६= १०८, २०४६% १२०, २२ x ६ = १३२, अ.म. ]. २४ x ३ = ७२, म. म. .... २७४३८१, उ.म.]. ३०४३,९०, ३+१२ + ४२ + ६० + ८४ +९६ + १०८ + १२० + १३२ + ७२ + ८२ + ९० = ९०० सागरोपम ।
एक पुद्गलपरिवर्तनको स्थापित करके आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करनेपर नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थिति होती है। अपगतवेदी तीन पदवाले कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा वे सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे कुछ कम एक पूर्वकोटि काल तक रहते हैं।
चार कषायवाले जीवोंकी प्ररूपणा मनोयोगियोंके समान है। अकषायी जीवोंकी प्ररूपणा अपगतवेदियों के समान है।
__ मति अज्ञानी व श्रुताज्ञानी तीनों पदवाले कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम अर्ध पुद्गलपरिवर्तन काल तक रहते हैं । विभंगज्ञानी तीनों पदवाले नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे कुछ कम ततीस सागरोपम काल तक रहते है। आभिनिबोधिकहानी, श्रुतज्ञानी और अवधि. झानी तीनों पदवाले नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे छयासठ सागरोपमसे कुछ अधिक काल तक रहते हैं।
१ अप्रतौ ' मणपज्जवभंगो' इति पाठः।
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