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छक्खंडागमे वैrणाखंड
सोहम्मे सत्तगुणं तिगुणं जाव दु सुसुक्ककप्पोति । सेसेसु भवे त्रिगुणं जाव दु आरणच्चुदो कप्पो ॥ १२६ ॥ पणगादी दोहि जुदा सत्तावीसा त्ति पल्ल देवीणं । तत्तो सत्तत्तरियं जावदु आरणच्चुओ' कप्पो' ॥ १२७ ॥
एदमाउअं ठवेदूण सोहम्माउअं सत्तगुणं, ईसाणादि जाव महासुक्के त्तितिगुणं, तत्तो जाव आरणच्चुदे त्ति बिगुणं काऊण मेलिदे त्थिवेदुक्कस्सट्ठिदी पलिदोवमसदपुधत्तमेत्ता होदि । तिस्से पमाणमेदं | ९०० | |
पुरिसेषु सदधतं असुरकुमारेसु होदि तिगुणेण । तिगुणे णववज्जे सग्गठिदी छग्गुणं होदि ॥ १२८ ॥
[ ४, १, ६६.
स्त्रीवेदी सौधर्म कल्पमें सात वार, ईशानसे लेकर महाशुक्र कल्प तक तीन वार, और आरण- अच्युत कल्प तक शेष कल्पों में दो वार उत्पन्न होता है ॥ १२६ ॥
देवियोंकी आयु सत्ताईस पल्य तक दोसे युक्त पांच आदि पल्य प्रमाण अर्थात् सौधर्म स्वर्ग में पांच, ईशान में सात, सनत्कुमार में नौ, माहेन्द्र में ग्यारह, इस प्रकार दो पल्यकी उत्तरोत्तर वृद्धि होकर सहस्रार कल्पमें सत्ताईस पल्य प्रमाण है । इसके आगे आरणअच्युत कल्प तक उत्तरोत्तर सात पल्य अधिक होते गये हैं ॥ १२७ ॥
इस आयुको स्थापित कर सौधर्म कल्पकी आयुको सातगुणी, ईशान कल्पको आदि लेकर महाशुक्र तक तिगुणी और इससे आगे आरण अच्युत कल्प तक दुगुणी करके मिलानेपर स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थिति पल्योपमशतपृथक्त्व मात्र होती है । उसका प्रमाण यह है - ३५ + २१ + २७ + ३३ + ३९ + ४५ + ५१ + ५७ + ६३ + ६९ + ५० + ५४ + ६८ + ८२ + ९६ + ११० = ९०० पल्योपम ।
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पुरुषवेदियों में रहनेका काल शतपृथक्त्व [ सागरोपम ] प्रमाण है । असुरकुमारोंमें तीन वार उत्पन्न होता है । नौ ग्रैवेयकों में तीन बार उत्पन्न होता है । स्वर्गी स्थिति छहगुणी होती है ॥ १२८ ॥
१ प्रतिषु ' अरसप्पओ ' इति पाठः ।
२ जे सोलस कप्पाणिं केई इच्छंति ताण उवएसे । अट्ठसु आउपमाण देवीण दक्खिणिदेसुं ॥ पलिदोवमाणि पण गव तेरस सतरस एक्कवीसं च । पणवीसं चउतीसं अट्ठत्तालं कमेणेव || पल्ला सत्तेक्कारस पण्णर सेक्कोणवीस-तेवीसं । सगवीसमेक्कतालं पंणवण्णं उत्तरिंददेवीणं ॥ ति. प. ८, १२७-२९. साहियपल्लं अवरं कप्पदुत्थिी पणग पढमवरं । एक्कारसे चउक्के कप्पे दो सत्तपरिवड्डी ॥ त्रि. सा. ५४२.
३ भप्रतौ ' - गेवज्जेसु सगट्ठिदि ', आ-काप्रत्योः ' गेवज्जे सगहिदीं ' इति पाठः ।
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