Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२९६ ]
छक्खंडागमे वेयणाखंड
पदमपुढवीए' चदुरो पण [ पण ] सेसासु होंति पुढवीसु । चदुदु देवे भवा बावीसं तिं सदपुधत्तं ॥ १२३ ॥
पढमढवीए चत्तारिवारमुप्पज्जिय सेसासु पुढवीसु पंच- पंचवारसुप्पज्जिय सोहम्मादि जाव आरणच्चुददेवेसु चत्तारि - चत्तारिवारमुप्पण्स्स सागरोवमसदपुधत्तं पंचिंदियपज्जत्तडिदी होदि । ९०० । ।
पुढविकाइ आउकाइय तेउकाइय-वाउकाइया कदिसंचिदा केवचिरं कालादो होंति ? जाणाजीव पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं [ पडुच्च ] जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा । तेसिं चेव बादरा कदिसंचिदा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण कम्मट्टिदी | एवं बादरवणप्फदिपत्तेयसरीराणं च वत्तव्वं । एदेसिं चैव पज्जत्ताणं तिणिपद केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि । तेसिं चेव अपज्जत्ताणं बादरेइंदियअपज्जत्तभंगो ||
[ ४, १, ६६.
प्रथम पृथिवीमें चार भव और शेष पृथिवियों में पांच पांच भव होते हैं । बाईस सागरोपम स्थिति तकके देवों में चार भव होते हैं । इस प्रकार पंचेन्द्रिय पर्याप्त काल सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण होता है ॥ १२३ ॥
प्रथम पृथिवी चार वार उत्पन्न होकर और शेष पृथिवियों में पांच पांच बार उत्पन्न होकर सौधर्म कल्पको आदि लेकर आरण अच्युत कल्प तकके देवोंमें चार चार वार उत्पन्न हुए जीवके सागरोपमशतपृथकत्व प्रमाण पंचेन्द्रिय पर्याप्त स्थिति पूर्ण होती है | ( सात पृथिवियोंमें ४६४, सौधर्मादि कल्पोंमें ४३६, ४३६+४६४ = ९०० सागरोपम ) ।
पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक और वायुकायिक, कृतिसंचित जीव कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे असंख्यात लोक प्रमाण काल तक रहते हैं ! उनके ही बादर कृतिसंचित जीव कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्ष से कर्म स्थिति प्रमाण काल तक रहते हैं। इसी प्रकार बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवांके भी कहना चाहिये | इनके ही पर्याप्त तीनों पदवाले कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से संख्यात हजार वर्ष तक रहते हैं । उनके ही अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा बादर एकेन्द्रिय
१ प्रतिषु ' पुढवीस ' इति पाठः ।
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