Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, १, ६६.
दुगस्स पंचिंदियभंगो । पंचमणजोगि पंचवचिजोगीसु तिण्णिपदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठचोहसभागा देसूणा सव्वलोगो वा । कुदो ? मुक्कमारणंतियस्स वि मण - वचिजोगसंभवादो । ओरालियकायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि कम्मइय कायजोगीणं खेत्तभंगो । वेउव्वियकायजोगीसु तिष्णिपदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठ-तेरह चोद्दसभागा वा देसूणा । वे उव्वियमिस्सकायजोगीणं खेत्तभंगो । इत्थ- पुरिसवेदाणं मण जोगिभंगो। चत्तारिकसायाणं कदिसंचिदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो । विभंगणाणि - तिपदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठ-तेरह चोद सभागा वा देसूणा सव्वलोगो वा । आभिणि बोहिय सुद - ओहिणाणिसु तिण्णिपदेहि लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठचोदभागा वा देसूणा । संजदासंजद तिण्णिपदेहि' लोगस्स असंखेज्जदिभागो छचोदसभागा [वा]देसूणा । चक्खुदंसणीणं मणपञ्जवभंगो । ओहिदंसणीणं ओहिणाणिभंगो । किण्ण-नील-कालेस्सियाणं ओरालियकायजोगिभंगो | तेउलेस्सियाणं सोहम्मभंगो । पम्मलेस्सियाणं सणक्कुमारभंगो। सुक्काए छचोद्दसभागा केवलिभंगो वा । भवसिद्धियाणं ओघभंगो । एवमभवसिद्धियाणं । पर्याप्तों की प्ररूपणा पंचेन्द्रियोंके समान है । पांच मनोयोगी व पांच वचनयोगियोंमें उक्त तीन पदों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? लोकका असंख्यातवां भाग कुछ कम आठ बटे चौदह भाग अथवा सर्व लोक स्पष्ट है । इसका कारण मुक्तमारणन्तिकके भी मनोयोग व वचनयोगकी सम्भावना है । औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी और कार्मणकाययोगी जीवोंकी प्ररूपणा क्षेत्रके समान है । वैक्रियिककाययोगियों में उक्त तीन पदों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट ? लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम आठ व तेरह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों की प्ररूपणा क्षेत्रके समान है ।
स्त्रीवेदी व पुरुषवेदियों की प्ररूपणा मनोयोगियोंके समान है । चार कषायवालों में कृतिसंचित जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पष्ट है ? सर्व लोक स्पृष्ट है । विभंगज्ञानियोंमें तीन पदों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम आठ व तेरह बटे चौदह भाग अथवा सर्व लोक स्पृष्ट है । आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानियोंमें उक्त तीन पदों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं। संयतासंयत तीन पदों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । चक्षुदर्शनियोंकी प्ररूपणा मन:पर्ययज्ञानियोंके समान है । अवधिदर्शनियोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है । कृष्ण, नील व कापोत लेश्यावालोंकी प्ररूपणा औदारिककाययोगियोंके समान है । तेजलेश्यावालोंकी प्ररूपणा सौधर्म कल्पके समान है । पद्मलेश्यावालोंकी प्ररूपणा सनत्कुमार कल्पके समान है । शुक्ललेश्यावालोंमें उक्त तीन पदों द्वारा छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, अथवा उनकी प्ररूपणा केवलियोंके समान है । भव्यसिद्धिक जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है । इसी प्रकार अभव्यसिद्धिक जीवोंकी भी प्ररूपणा है । विशेषता केवल इतनी है कि उनके केवलि
१ अप्रतौ संजदासंजदा तिष्णिपदाणि ', आप्रतौ ' संजदासंजदा तिष्णिप० ', काप्रतौ ' संजदासंजद तिष्णि पलिदो ० ' इति पाठः ।
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