Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ५५.] कदिअणियोगदारे सुदणाणीवजोगा
[२५१ एसा' वि उवजोगो। कम्माणिज्जरणट्ठमट्ठि-मज्जाणुगयस्स सुदणाणस्स परिमलणमणुपेक्खणा णाम । एसा वि सुदणाणोवजोगो । बारसंगसंघारो सयलंगविसयप्पणादो थवो णाम । तम्हि जो उवजोगो वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुवेक्खणसरूवो सो वि थओवयारेण । बारसंगेसु एक्कंगोवसंघारो थुदी णाम । तम्हि जो उवजोगो सो वि थुदि' त्ति घेत्तव्यो । एक्कंगस्स एगाहियारोवसंहारो धम्मकहा। तत्थ जो उवजोगो सो वि धम्मकहा त्ति घेत्तव्यो। जे च अमी अण्णे एवमादिया त्ति वुत्ते कदि-वेदणादिउवसंघारविसया उवजोगा घेत्तव्वा । उवजोगसदो जदि वि सुत्ते णत्थि तो वि अत्थावत्तीदो अज्झाहारेदव्यो । एवमेदे अट्ट सुदणाणोवजोगा परूविदा।
संपहि कदीए अट्ठविहोपजोगपरूवणा कीरदें-- अण्णेसिं जीवाणं कदीए अत्थपरूवणा वायणा । अणवगयत्थपुच्छा पुच्छणा । कहिज्जमाणअत्थावहारणं पडिच्छणा । अविस्सरण8 पुणो पुणो कदिय?परिमलणं परियट्टणा। सांगीभूदकदीए कम्मनिज्जरट्ठमणुसरणमणुवेक्खणा । कदीए उवसंहारस्स सयलाणियोगद्दारेसु उवजोगो थवो णाम । तत्थेगणि
है । कर्मोंकी निर्जराके लिए अस्थि मज्जानुगत अर्थात् पूर्ण रूपसे हृदयंगम हुए श्रुतज्ञानके परिशीलन करनेका नाम अनुप्रेक्षणा है। यह भी श्रुतज्ञानका उपयोग है। सब अंगोंके विषयोंकी प्रधानतासे बारह अंगोंके उपसंहार करनेको स्तव कहते हैं। उसमें जो वाचना, पृच्छना, परिवर्तना और अनुप्रेक्षणा स्वरूप उपयोग है वह भी उपचारसे स्तव कहा जाता है। बारह अंगोंमें एक अंगके उपसंहारका नाम स्तुति है। उसमें जो उपयोग है वह भी स्तुति है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । एक अंगके एक अधिकारके उपसंहारका नाम धर्मकथा है । उसमें जो उपयोग है वह भी धर्मकथा है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । 'इनको आदि लेकर और जो वे अन्य है' इस प्रकार कहनेपर कृति व वेदना आदिके उपसंहारविषयक उपयोगोंको ग्रहण करना चाहिये। उपयोग शब्द यद्यपि सूत्रमें नहीं है तो भी अर्थापत्तिसे उसका अध्याहार करना चाहिये। इस प्रकार ये आठ श्रुतज्ञानोपयोग कहे गये हैं।
अब कृतिके विषयमें आठ प्रकार उपयोगोंकी प्ररूपणा करते हैं- अन्य जीवोंके लिये कृतिके अर्थकी प्ररूपणा करना वाचना कहलाती है। अज्ञात अर्थक विषयमें पूछनापृच्छना ह। प्ररूपित किये जानेवाले अर्थका निश्चय करनेको प्रतीच्छना कहते हैं। विस्मरण न होने देनेके लिये वार वार कृतिके अर्थका परिशीलन करना परिवर्तना है। सांगीभूत कृतिका कर्मनिर्जराके लिये अनुस्मरण अर्थात् विचार करना अनुप्रेक्षणा कही जाती है। समस्त अनुयोगोंमें कृतिके उपसंहारविषयक उपयोगका नाम स्तव है। कृतिके एक अनुयोगद्वार
२ काप्रतौ ' एसो ' इति पाठः ।
१ प्रतिषु ' एसो' इति पाठः । ३ प्रतिषु ' मदि ' इति पाठः।
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