Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ६६.1 कदिअणियोगहारे गणणकदिओघाणुगमरवणा
। २७७ एत्थ ताव कदि-णोकदि-अवत्तव्वाणमुदाहरणट्ठमिमा परूवणा कारदे । तीए कीरमाणाए ओघाणुगमो पढमाणुगमो चरिमाणुगमो संचयाणुगमो चेदि चत्तारि अणिओगद्दाराणि । तत्थ ताव ओघाणुगमा बुच्चदे- सो दुविहो मूलोघाणुगमो चेदि आदेसोघाणुगमो चेदि । तत्थ मूलोघाणुगमो बुच्चदे । तं जहा- जीवा कदी। कुदो एदस्स मूलोपत्तं ? सुद्धसंगहवयणादो । आदेसोपो वुच्चदे- गदियादिचोदसमग्गणहाणेसु ह्रिदजीवा कदी, तत्थ सुद्धेगदोजीवाणुवलंभादो । णवरि मणुसअपज्जत्त-वेउब्वियमिस्साहारदुग-सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदउवसम-सासणसम्माइद्वि-सम्मामिच्छादिट्ठिजीवा सिया कदी, तिप्पहुडि उवरिमसंखाए कदाचिदुवलंभादो । सिया णोकदी, एदेसु अट्टसु कदाचि एगस्सेव जीवस्स दंसणादो । सियावत्तव्यकदी, कदाचि दोण्णं चेवुवलंभादो । एवमोघाणुगमो समत्तो ।
पढमाणुगमा वुच्चदे ---- कस्स पढमसमए एसो अणुगमो कीरदे ? मग्गणाणं । एत्य
यहां कृत्ति, नोकृति और अवक्तव्य के उदाहरणोंके लिये यह प्ररूपणा की जाती है। उस प्ररूपणाके करनेमें ओघानुगम, प्रथमानुगम, चरमानुगम और संचयानुगम, ये चार अनुयोगद्वार हैं। उनमें पहले ओधानुगमको कहते हैं। वह दो प्रकार है ---- मूलौघानुगम और आदेशौघानुगम | उनमें मूलौघानुगमको कहते हैं। वह इस प्रकार है-जीव कृति है।
शंका- यह मूलौघ कैसे है ?
समाधान-- चूंकि यह कथन शुद्ध संग्रहनयकी अपेक्षा किया गया है, अतः वह मूलौघ है।
आदेशौघकी प्ररूपणा करते हैं - गति आदि चौदह मार्गणास्थानों में स्थित जीव कृति हैं, क्योंकि, उनमें शुद्ध एक दो जीव नहीं पाये जाते । विशेषता इतनी है कि मनुष्य अपर्याप्त, वैक्रिीयकीमश्र, आहारद्विक, सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत, उपशमसम्यग्हा सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव कथंचित् कृति हैं, क्योंकि, वे तीन आदि उपरिम संख्यामें कभी पाये जाते हैं। कथंचित् वे नोकृति हैं, क्योंकि, इन आठ स्थानोंमें कभी एक ही जीव देखा जाता है। कथंचित् अवक्तव्य कृति हैं, क्योंकि, कभी वहां दो ही जीव पाये जाते हैं । इस प्रकार ओघानुगम समाप्त हुआ।
प्रथमानुगमकी प्ररूपणा करते हैंशंका-किसके प्रथम समयमें यह अनुगम किया जाता है ? समाधानमार्गणाओंके प्रथम समयमें यह अनुगम किया जाता है।
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