________________
४, १, ६६.] कदिअणियोगद्दारे गणणकदिपरूवणा
[२७५ वुत्तं । एसा बिदियगणणजाई । तिप्पहुडि जा संखा वग्गिदे वड्डदि, तत्थ मूलमवणिय वग्गिदे वि वड्डिमल्लियइ तेण सा कदि त्ति वुत्ता । एदं तदियगणणकदिविहाणं । ण चउत्थी गणणकदी अस्थि, तीहिंतो वदिरित्तगणणाणुवलंभादो। एगो एगो त्ति गणिज्जणाणे णोकदिगणणा । दो-दो त्ति गणिज्जमाणे अवत्तव्वा गणणा । तिण्णि-चत्तरि-पंचादिक्कमेण गणिज्जमाणे कदिगणणा ति । तेण गणणाकदी तिविधा चेव । अधवा कदिगयसंखेज्जासंखेज्ज-अणंतभेदेहि अणेयविहा । तत्थ एगादिएगुत्तरकमेण वड्डिदरासी णोकदिसंकलणा। दोआदिदोउत्तरकमेण वड्ढेि गदा अवत्तव्वसंकलणा। तिण्णि-चत्तारिआदीसु अण्णदरमादि कादूण तेसु चेव वण्णदरुत्तरकमेण गदवड्डी कदिसंकलणा । एदेसिं दुसंजोगेण अण्णाओ छस्संकलणाओ उप्पाएअव्वाओ। एवं रिणगणणाओ णवविहा उप्पाएयव्वा ।
यह द्वितीय गणनाकी जाति है। तीनको आदि लेकर जो संख्या वर्गित करनेपर चूंकि बढ़ती है और उसमेंसे वर्गमूलको कम करके पुनः वर्ग करनेपर भी वृद्धिको प्राप्त होती है इसी कारण उसे कृति ऐसा कहा है। यह तृतीय गणनकृतिका विधान है। चतुर्थ कोई गणनकृति नहीं है, क्योंकि, तीनसे अतिरिक्त गणना पायी नहीं जाती। एक-एक ऐसी गणना करनेपर नोकृतिगणना, दो दो इस प्रकार गणना करनेपर अवक्तव्यगणना, तथा तीन चार व पांच इत्यादि क्रमसे गणना करनेपर कृतिगणना कहलाती है। अत एव गणना. कृति तीन प्रकार ही है। अथवा कृतिगत संख्यात, असंख्यात व अनन्त भेदोंसे गणनाकृति अनेक प्रकार है। उनमें एकको आदि लेकर एक अधिक क्रमसे वृद्धिको प्राप्त राशि नोकृतिसंकलना है । दोको आदि लेकर दो अधिक क्रमसे वृद्धिको प्राप्त र संकलना है। तीन व चार इत्यादिकोंमें अन्यतरको आदि करके उनमें ही अन्यतरके अधिक क्रमसे वृद्धिंगत राशि कृतिसंकलना है । इनके द्विसंयोगसे अन्य छह संकलनाओंको उत्पन्न कराना चाहिये । इसी प्रकार नौ ऋणगणनाओंको उत्पन्न कराना चाहिये।
विशेषार्थ-यहां नौ संकलनाओंका स्वरूप इस प्रकार बतलाया गया प्रतीत होता है
१ नोकृतिसंकलना-जैसे १, २, ३, ४, ५, ६, ७ आदि । २ अवक्तव्यसंकलना-२, ४, ६, ८, १०, १२, १४ आदि ।
३ कृतिसंकलना-३, ६, ९, १२ आदि; ४, ८, १२, १६ आदि; ५, १०, १५, २० इत्यादि ।
इन तीनोंके ६ द्विसंयोगी भंग- ४ नोकृति अवक्तव्य ५ नोकृति कृति ६ अवक्तव्य-कृति ७ अवक्तव्य नोकृति ८ कृति नोकृति ९ कृति-अवक्तव्य ।
इन्हीं नौ संकलनाओंको विपरीत क्रमसे ग्रहण करनेपर ऋणगणनाओंके नौ प्रकार उत्पन्न होते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org