Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ६६.] कदिअणियोगदारे फोसणाणुगमो
[२८७ खेत्ते १ सव्वलोए । कारणं सुगमं । एवमोरालियकायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-कम्मइयकायजोगि-चत्तारिकसाय किण्ण-णील-काउलेस्सिय-आहार-अणाहाराणं वत्तव्यं, भेदाभावादो । बादरवाउकाइयपज्जत्ता कदिसंचिदा केवडिखेत्ते ? लोगस संखेज्जदिभागे । णोकदिअवत्तव्यसंचिदा लोगस्स संखेज्जदिभांग, बादरवाउपज्जत्तहिदीए संखेज्जवाससहस्सपमाणाए णोकदि-अवत्तव्वेहि संचिदजीवाणमावलियाए असंखेज्जदिभागपमाणाणुवलंभादो । एवं खेत्ताणुगमो समत्तो।
पोसणाणुगमेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइएसु कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदेहि केवडियं खेत्तं पोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो छचोद्दसभागा वा देसूणा । पढमाए पुढवीए खेत्तभंगो। बिदियादि जाव सत्तमि त्ति णेरइएसु कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदेहि केवडियं खेत्तं फोसिद ? लोगस्त असंखेज्जदिभागो एक्क-बे-तिण्णि-चत्तारि-पंच-छचोदसभागा वा देसूणा ।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदेहि केवडियं खेत फोसिहं ? सव्वलोगो । एवमेइंदिय-कायजोगि-णqसयवेद-मदि-सुदअण्णाण-असंजद-मिच्छाइटिअसण्णीण पि वत्तत्वमविसेसादो। पंचिंदियतिरिक्खचउक्कम्मि कदि-णोकदि-अवत्तव्य
संचित कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सब लोकमें रहते हैं। कारण सुगम है। इसी प्रकार औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, चार कषाय, कृष्ण, नील, व कापोत लेश्यायाले, आहारक व अनाहारक जीवोंके कहना चाहिये, क्योंकि, इनके कोई विशेषता नहीं है । बादर वायुकायिक पर्याप्त कृतिसंचित कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं। नोकृति व अवक्तव्य संचित वे लोकके संख्यातवें भागमें पा जाते हैं, क्योंकि, संख्यात हजार वर्ष प्रमाण बादर वायुकायिक पर्याप्तोंकी स्थितिमें नोकृति और अवक्तव्यसे संचित जीव आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण पाये जाते हैं। इस प्रकार क्षेत्रानुगम समाप्त हुआ।
स्पर्शानुगमसे गतिमार्गणानुसार नरकगतिमें नारकियों में कृति, नोकृति और अवक्तव्य संचित जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । प्रथम पृथिवीमें स्पर्शनको प्ररूपणा क्षेत्रके समान है । द्वितीयसे लेकर सप्तम पृथिवी तक नारकियों में कृति, नोकृति और अवक्तव्य संचित जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पष्ट है ? लोकका असंख्यातवां भाग अथवा क्रमसे कुछ कम एक, दो, तीन, चार, पांच और छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं।
तिर्यंचगतिमें तिर्यंचोंमें कृति, नोकृति और अवक्तव्य संचित जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? सर्व लोक स्पृष्ट है। इसी प्रकार एकेन्द्रिय, काययोगी, नपुंसकवेद, मातिअज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, मिथ्यादृष्टि और असंझी जीवोंके भी कहना चाहिये, क्योंकि, इनके कोई विशेषता नहीं है। पंचेन्द्रिय तिर्वच आदिक चारमें कृति, नोकृति और
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