Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२८४1 - छक्खंडागमै वैयणाखंड
[., १,६६. रित्तो कदिसंचिदरासी होदि । एसो तेरासियकमेण णाणेदव्यो । एत्थ णोकदि-अवत्तव्वसंचिदरासी असंखेज्जवासाउएसु घेत्तव्वो, तत्थ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तजीवाणमुवलंभादो । कदिसंचिदा पुण संखेज्जवासाउएसु घेत्तव्यो । कारणं सुगमं ।
मणुस-मणुसअपज्जत्तएसु कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदा केत्तिया १ असंखेज्जा। तत्थ संचयाणयणविहाणं जाणिय वत्तव्वं । एवं देव-भवणवासियप्पहुडि जाव अवराइददेव सबविगलिंदिय-सव्वपंचिंदिय-बादरपुढविकाइय-आउकाइय-तेउकाइय-वाउकाइय-वणप्फदिपत्तेयसरीरपज्जत्त-तसतिण्णि-पंचमणजोगि-पंचवचिजोगि-वेउब्वियदुगित्थि-पुरिसवेद-विहंगणाणिआमिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणि-संजदासंजद चक्खुदंसण-ओहिदंसण-तेउ-पम्म-सुक्कलेस्सिय-- सम्मादिहि-खइयसम्मादिहि-वेदगसम्मादिहि-उवसमसम्मादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छा- दिहि-सण्णीणं वत्तव्वं, भेदाभावादो ।
मणुसपज्जत्त-मणुसिणी-सब्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेव-आहारदुग-अवगदवेद-अकसायसंजद-सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजद-परिहारसुद्धिसंजद-सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजद-जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदेसु कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदा केत्तिया ? संखेज्जा । कुदो ? संखेज्ज
जीवोंसे भिन्न कृतिसंचित राशि है। इसे त्रैराशिक क्रमसे नहीं लाया जा सकता। यहां नोकृति और अवक्तव्यसाचत राशिका असख्यात वष आयुवालामे ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, उनमें पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र जीव पाये जाते है। परन्तु कृतिसंचित राशिका संख्यात वर्ष आयुवालोंमें ग्रहण करना चाहिये । कारण सुगम है।
मनुष्य च मनुष्य अपर्याप्तोंमें कृति, नोकृति और अवक्तव्य संचित जीव कितने है? असंख्यात हैं । वहांपर संचय लानेके विधानको जानकर कहना चाहिये।
इसी प्रकार देव व भवनवासियोंको आदि लेकर अपराजित विमानवासी देव, सब विकलेन्द्रिय, सब पंचेन्द्रिय, बादर पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक व प्रत्येकशरीर पर्याप्त, त्रस तीन, पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, वैक्रियिकद्विक, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकहानी, श्रुतज्ञानी, अवधिशानी, संयतासंयत, चक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, तेज, पद्म व शुक्ल लेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंके कहना चाहिये, क्योंकि, उनके कोई विशेषता नहीं है।
मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी, सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देव, आहारद्विक, अपगतघेदी, अकषायी, संयत, सामायिक छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत, परिहारशुद्धिसंयत, सूक्ष्म साम्परायिकशुद्धिसंयत और यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतोंमें कृति, नोकृति व अवक्तव्य संचित कितने हैं ? संख्यात हैं, क्योंकि, ये राशियां संख्यात हैं।
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