Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, १, ६५.
एदस्स अत्थो बुच्चदे - 'जे हमे कदि त्ति अणियोगद्दारा ' एदेण बहुवयांतसुत्तावयवेण कदिअणिओगद्दाराणं बहुत्तं परुविदं । तेसिमणिओगद्दाराणमिदि संबंध कायवो, अण्णा अणुवत्तदो । भविओवकरणदाए त्ति उवयरणं कारणं । तं च तिविदं भूदं भवियं वट्टमाणमिदि । तत्थ जो कदिअणिओगद्दाराणं भवियोवकरणदाए भविस्सकाले एदेसिमणिओगद्दाराणमुवायाणकारणदाए जो ट्ठिदो जीवो ण ताव तं करेदि सा सव्वा भवियदव्वकदी णाम ।
जा सा जाणुगसरीर - भवियवदिरित्तदव्वकदी णाम सा अणयविहा । तं जहा - गंथिम वाइम वेदिम- पूरिम-संघादिम- अहोदिमणिक्खोदिम ओवेल्लिम उव्वेल्लिम वण्ण-चुण्ण-गंधविलेवणादीणि जे चामण्णे एवमादिया सा सव्वा जाणुगसरीर-भवियवदिरित्तदव्यकदी णाम ।। ६५ ।।
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जा सा जाणुगसरीरभवियवदिरित्तदव्वकदी णाम ' एदं पुव्वुद्दिदुवियप्पसंभालणटुं विदं । तत्थ गंधणकिरियाणिष्फणं फुल्लमादिदव्वं गंथिम णाम । वायणकिरियाणिफण्णं सुप्प-पच्छिया- चंगेरि-किदय - चालणि- कंबल - वत्थादिदव्वं वाइमं णाम । सुत्तिं धुवकोसपल्लादि -
इस सूत्र का अर्थ कहते हैं-- ' जो ये कृतिअनुयोगद्वार हैं ' इस बहुवचनान्त सूत्रांशसे कृतिअनुयोगद्वारोंकी अधिकता बतलाई है। यहां 'उन अनुयोगद्वारोंकी ' ऐसा सम्बन्ध करना चाहिये, क्योंकि, इसके चिना अर्थ नहीं बनता । 'भविओवकरणदाए ' यहां उपकरणका अर्थ कारण है । वह तीन प्रकार हैभूत, भविष्यत् और वर्तमान । उनमें जो कृतिअनुयोगद्वारोंके 'भवियोवकरणदार अर्थात् भविष्य कालमें इन अनुयोगद्वारोंके उपादान कारण स्वरूपसे जो जीव स्थित होता हुआ उस समय उसे नहीं करता है वह सब भावी द्रव्यकृति है ।
जो वह ज्ञायकशरीर और भावी से भिन्न द्रव्यकृति है वह अनेक प्रकार है । वह इस प्रकार से है -- ग्रन्थिम, वाइम, वेदिम, पूरिम, संघातिम, अहोदिम, णिक्खादिम, ओवेल्लिम, उद्वेल्लिम, वर्ण, चूर्ण, गन्ध और विलेपन आदि तथा और जो इसी प्रकार अन्य हैं वह सच ज्ञायकशरीर- भाविव्यतिरिक्तद्रव्यकृति कही जाती है ।। ६५ ।।
' जो वह ज्ञायकशरीर- भाविव्यतिरिक्त द्रव्यकृति है' यह पूर्वोक्त विकल्पोंका स्मरण कराने के लिये प्ररूपणा की है। उनमें गूंथने रूप क्रियासे सिद्ध हुए फूल आदि द्रव्यको ग्रन्थिम कहते हैं । बुनना क्रियासे सिद्ध हुए सूप, टिपारी, चंगेर (एक प्रकारकी बड़ी टोकरी), किदय ( कृतक ? ), चालनी, कम्बल और वस्त्रादि द्रव्य वाहम कहलाते हैं । वेधन क्रिया से
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