Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२७० खंडागमे वैयणाखंड
[., १, ११. इमं सरीरमिदि कटु ताणि सव्वसरीराणि जाणुगसरीरदव्वकदी णाम । कथं सरीराणं णोआगमदवकदिव्ववएसो ? आधारे आधेओवयारादो । जदि एवं तो सरीराणमागमत्तमुवयारेण किण्ण वुच्चदे ? आगम-णोआगमाणं भेदपदुप्पायणटुं ण' बुच्चदे पओजणाभावादो च । भवियवट्टमाणजाणुगसरीरणोआगमदव्वकदीओ सुत्ते केण णपण ण वुत्ताओ? सरीर-सरीरीणमभेदपण्णावएण । कधं सरीरादो सरीरी अभिण्णो ? सरीरदाहे जीवे दाहोवलंभादो, सरीरे भिज्जमाणे छिज्जमाणे च जीवे वेयणोवलंभादो, सरीरागरिसणे जीवागरिसणसणादो, सरीरगमणागमणेहि जीवस्स गमणागमणदंसणादो, पडियारखंडयाणं व दोण्णं भेदाणुवलंभादो, एगीभूददुद्धोदयं व
देहवाले कृतिप्राभृतके शायकोंका यह शरीर है, ऐसा जानकर वे सब शरीर झायकशरीर. द्रव्यकृति कहलाते हैं।
शंका-शरीरोंकी नोआगमद्रव्यकृति संज्ञा कैसे सम्भव है ?
समाधान-चूंकि शरीर नोआगमद्रव्यकृतिके आधार है, अतः आधारमें आधेयका उपचार करनेसे शरीरोंकी उक्त संज्ञा सम्भव है।
शंका-यदि ऐसा है तो शरीरोंको उपचारसे आगम क्यों नहीं कहते ?
समाधान-~-भागम और नोआगमका भेद बतलानेके लिये तथा कोई प्रयोजन न होनेसे भी शरीरोंको आगम नहीं कहते।
शंका-भावी और वर्तमान शायकशरीर नोभागमद्रव्यकृतियोंको सूत्रमें किस नयसे नहीं कहा?
समाधान-शरीर और शरीरीका अभेद बतलानेवाले नयसे उन्हें सूत्र में नहीं कहा। शंका-शरीरसे शरीरधारी जीव अभिन्न कैसे है ?
समाधान-चूंकि शरीरका दाह होनेपर जीवमें दाह पाया जाता है, शरीरके भेदे जाने और छेदे जानेपर जीवमें वेदना पायी जाती है, शरीरके खींचने में जीवका भाकर्षण देखा जाता है, शरीरके गमनागमनमें जीवका गमनागमन देखा जाता है, प्रत्याकार (म्यान ) और खण्डक (तलवार ) के समान दोनोंके भेद नहीं पाया जाता है, तथा एक रूप हुए दूध और पानीके समान दोनों पक रूपसे पाये जाते हैं। इस कारण
१ प्रतिषु णाम ' इति पाठः ।
२ प्रतिषु
इति पाठः।
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