Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे यणाखंड
[ ४, १,४५.
तव्वदिरित्तणोआगमदब्बग्गेणिए अक्खरट्ठवणग्गेणिए च पयदं । पज्जवट्ठियणय पडुच्च आगमभागेण पयदं । णइगमणयं पडुच्च अग्गेणियपुव्वहर- तिकोडिपरिणयजीवदव्वेण पदं । एवं क्खेिव - एहि अवयारो पविदो |
पमाण- पमेयाणं दोन्हं पि एत्थ गहणं कायव्वं, अण्णोण्णाविणाभावादो ।
२२६ ]
पुव्वाणुपुवीए बिदियमग्गेणियं । पच्छाणुपुव्वीए तेरसमं । जत्थ तत्थाणुपुवीए अव - तव्वं, पढमं बिदियं तदियं चउत्थं पंचमं छटुं सत्तममट्ठमं णवमं दसममेक्कारसमं बारसमं वा त्ति नियमाभावादो । अंगानामग्रमेति गच्छति प्रतिपादयतीति गोण्णणाममग्गेणियं । अक्खरपद - संघाद-पडिवत्ति-अणिओगद्दारेहि संखेज्जमणंत वा अत्थाणंतियादो' । वत्सव्वं ससम्ओ, परसमयपरूवणाभावादो | अत्थाहियारो चोद्दसविहो । तं जहा - पुते अवरंते धुवे अद्भुवे चयणलद्धी अद्धवसंपणिधाणे कप्पे अट्ठे भोम्मावयादीए सव्व कप्पणिज्जाणे तीदाणगय
स्थापना रूप अग्रायणीय प्रकृत है । पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षा करके आगमभाव अप्रायणीय प्रकृत है । नैगमनयकी अपेक्षा करके अग्रायणीयपूर्वका धारक त्रिकोटिपरिणत ( उत्पाद, व्यय व धौव्य; अथवा द्रव्य, गुण व पर्यायः अथवा सत्, असत् व उभय स्वरूप ) जीव द्रव्य प्रकृत है । इस प्रकार निक्षेप और नयसे अवतारकी प्ररूपणा की है।
प्रमाण और प्रमेय दोनोंका ही यहां ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, वे परस्पर में भविनाभावी हैं ।
पूर्वानुपूर्वी से अग्रायणीयपूर्व द्वितीय है । पश्चादानुपूर्वीसे वह तेरहवां है । यत्रतत्रानुपूर्वीसे वह अवक्तव्य है, क्योंकि, प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ, सप्तम, आठवां, नौवां, दशवां, ग्यारहवां, अथवा बारहवां है, इस प्रकार उक्त आनुपूर्वीकी अपेक्षा कोई नियम नहीं है ।
अंगके अग्र अर्थात् प्रधान पदार्थको वह प्राप्त होता है अर्थात् प्रतिपादन करता है अतः अप्रायणीय यह गौण्य नाम है । अक्षर, पद, संघात, प्रतिपत्ति और अनुयोगद्वारोंकी अपेक्षा संख्यात है, अथवा अर्थोंकी अनन्तताकी अपेक्षा वह अनन्त है। वक्तव्य स्वसमय है, क्योंकि, परसमयकी प्ररूपणाका यहां अभाव है । अर्थाधिकार चौदह प्रकार है । वह इस प्रकारसे है- पूर्वान्त, अपरान्त, ध्रुव, अध्रुव, चयनलब्धि, अध्रुवसंप्रणिधान, कल्प, अर्थ, भौमायाद्य, सर्वार्थ, कल्पनिर्याण, (सर्वार्थकल्प, निर्वाण,) अतीतकाल और अनागत
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१ प्रतिषु ' अत्थाणंतियालो ' इति पाठः ।
२ प्रतिषु ' भोम्भावयाधीए ' इति पाठः ।
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