Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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११२ छक्खंडागमे वेयणाखंड
[२, १, १५. एदेसिं चदुवीसण्णमणिओगद्दाराणं वत्तवपरूवणा कीरदे । तं जहा- कदीए ओरा. लिय-वेउव्विय-तेजाहार-कम्मइयसरीराणं संघादण-परिसादणकदीओ भवपढमापढम-चरिमम्मि. विदजीवाणं कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंखाओ च परूविज्जति । वेदणाए कम्म-पोग्गलाणं वेदणासण्णिदाणं वेदणणिक्खेवादिसोलसेहि अणिओगहारेहि परूवणा कीरदे । पासणि
औगद्दारम्मि कम्म-पोग्गलाणं णाणावरणादिभेएण अट्ठभेदमुवगयाणं फासगुणसंबंधेण पत्तफासणामाण पासणिक्खेवादिसोलसेहि अणियोगदारेहि परूवणा कीरदे । कम्मे त्ति अणियोगद्दारे पोग्गलाणं णाणावरणादिकम्मकरणक्खमत्तणेण पत्तकम्मसण्णाणं कम्मणिक्खेवादि. सोलसेहि अणियोगद्दारेहि परूवणा कीरदे । पयडि त्ति अणियोगद्दारम्हि पोग्गलाणं कदिम्हि परूविदसंघादाणं वेदणाए पण्णविदावत्थाविसेस-पच्चयादीणं पासम्मि परूविदजीवसंबंधाणं जीवसंबंधगुणेण कम्मम्मि णिरूविदवावाराणं पयडिणिक्खेवादिसोलसअणियोगद्दारहि सहाव.
इन चौबीस अनुयोगद्वारोंकी विषयप्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार हैकृतिअनुयोगद्वारमें औदारिक, वैक्रियिक, तैजस, आहारक और कार्मण शरीरोंकी संघातन और परिशातन रूप कृतिकी तथा भवके प्रथम, अप्रथम और चरम समयमें स्थित जीवोंकी कृति, नोकृति एवं अवक्तव्य रूप संख्याओंकी प्ररूपणा की जाती है। वेदना अनुयोगद्वारों में वेदना संशावाले कर्मपुद्गलोंकी वेदनानिक्षेप आदि सोलह अनुयोगद्वारोंके द्वारा प्ररूपणा की जाती है । स्पर्श अनुयोगद्वार में स्पर्श गुणके सम्बन्धसे स्पर्श नामको व शानावरणादिके भेदसे आठ भेदको भी प्राप्त हुए कर्मपुद्गलोंकी स्पर्शनिक्षेप आदि सोलह अनुयोगद्वारोंसे प्ररूपणा की जाती है। कर्म अनुयोगद्वारमें कर्मनिक्षेप आदि सोलह अनुयोगद्वारोंके द्वारा ज्ञानके आवरण आदि कार्योंके करने में समर्थ होनेसे कर्म संक्षाको प्राप्त पुद्गलोंकी प्ररूपणा की जाती है। प्रकृति अनुयोगद्वारमें-कृति अधिकारमें जिनके संघातन स्वरूपकी प्ररूपणा की गई है, वेदना अधिकारमें जिनके अवस्थाविशेष व प्रत्ययादिकोंकी प्ररूपणा की गई है, स्पर्श अधिकारमें जिनके जीवके साथ सम्बन्धकी प्ररूपणा की गई है, तथा जीवसम्बन्ध गुणसे कर्म अधिकारमें जिनके व्यापारकी प्ररूपणा की गई है- उन पुद्गलोंके स्वभावकी प्रकृतिनिक्षेप आदि सोलह अनुयोगद्वारोंसे प्ररूपणा की जाती है ।
१ प्रतिषु ' अणियोगद्दारहि इति पाठः।
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