Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 257
________________ २३० ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, १,४५. णिक्खेवो अणुगमो णओ त्ति चउव्विह। अवयारो । तत्थ ताव णिक्खेवा वुच्चदे - णामट्ठवणा- दव्व-भावकम्मपय डिपाहुडमिदि चउव्विहं कम्मपयडिपाहुडं । तत्थ आदिल्ला तिण्णि विणिक्खेवा दव्वट्ठियणयसंभवा, भावणिक्खेवो पज्जवट्ठियणयप्पहवो । कम्मपयडिपाहुडसहो बज्झत्थणिरवेक्खो अप्पाणम्हि वट्टमाणो णामकम्मपयडिपाहुडं । तमेसो त्ति बुद्धीए कम्मपयडिपाहुडेण एगत्तमुवगयत्थो ह्वणाकम्मपयडिपाहुडं । दव्वकम्मपयडिपाहुडमागम - णोआगमकम्मपयडिपाहुडं इदि दुविहं । कम्मपयडिपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो आगमदव्वकम्मपयडिपाहुडं । णोआगमदव्वकम्मपयडिपाहुडं जाणुगसरीर-भविय तव्वदिरित्तणोआगमदव्वकम्मपयडिपाहुडं ति तिविहं । आदिल्लं दुगं सुगमं, बहुसो उत्तत्थादो । कम्मपयडिपाहुडसद्दरयणा तट्ठवणरयणा वा णो आगमतव्वदिरित्तदव्वकम्मपयडिपाहुडं । [ भावकम्मपयडिपाहुडं ] दुविहं आगम-णोआगमभेण । कम्मपयडिपाहुडजाणओ उवजुत्तो आगमभावकम्मपयडिपाहुडं | आगमेण विणा तदद्भुवजुत्तो णोआगमभावकम्मपयडिपाहुडमुवारादो । एत्थ दव्वट्ठियणयं पडुच्च तव्वदिरित्तणोआगमदव्वकम्मपयडिपाहुडेण अहियारो । पज्जवट्ठियणयं पडुच्च आगमभावकम्मपयडिपाहुडेण अहियारो । इगमणयं पडुच्च कम्मपयडिपाहुडजाणओ तिकोडिपरिणामजुत्तो जीवो उसका भी उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय, इस प्रकारसे चार प्रकारका अवतार है । उनमें निक्षेपको कहते हैं - कर्मप्रकृतिप्राभृतके नामकर्मप्रकृतिप्राभृत, स्थापनाकर्मप्रकृतिप्राभृत, द्रव्यकर्मप्रकृतिप्राभृत और भावकर्मप्रकृतिप्राभृत इस प्रकार चार भेद हैं। इनमें आदिके तीनों ही निक्षेप द्रव्यार्थिकनयके निमित्तसे होनेवाले हैं, किन्तु भावनिक्षेप पर्याया किनके निमित्तसे होनेवाला है । बाह्य अर्थकी अपेक्षा न रखकर अपने आपमें रहनेवाला कर्मप्रकृतिप्राभृत यह शब्द नामकर्मप्रकृतिप्राभृत है । 'वह यह है' इस प्रकारकी बुद्धिसे कर्मप्रकृतिप्राभृतके साथ एकताको प्राप्त पदार्थ स्थापनाकर्मप्रकृतिप्राभृत कहा जाता है । द्रव्यकर्मप्रतिप्राभृत आगमकर्मप्रकृतिप्राभृत और नोआगमकर्मप्रकृतिप्राभृतके भेद से दो प्रकार है । कर्मप्रकृतिप्राभृतका जानकार उपयोग रहित जीव आगमद्रव्यकर्मप्रकृतिप्राभृत कहलाता है । नोआगमद्रव्यकर्मप्रकृतिप्राभृत ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यकर्मप्रकृतिप्राभृतके भेदसे तीन प्रकार है । इनमेंसे आदिके दो सुगम हैं, क्योंकि, उनका अर्थ बहुत वार कहा जा चुका है । कर्मप्रकृतिप्राभृतकी शब्दरचना अथवा उसकी स्थापना रूप रचना नोआगमतद्व्यतिरिक्त द्रव्यकर्मप्रकृतिप्राभृत है। [ भावकर्मप्रकृतिप्राभृत ] आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकार है । कर्मप्रकृतिप्राभृतका जानकार उपयोग युक्त जीव आगमभावकर्मप्रकृतिप्राभृत कहलाता है । आगमके विना उसके अर्थ में • उपयोग युक्त जीव उपचारसे नोआगमभावकर्मप्रकृति कहलाता है । यहां द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा करके तद्व्यतिरिक्तनो आगमद्रव्यकर्मप्रकृतिप्राभृतका अधिकार है । पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षा करके आगमभावकर्मप्रकृतिप्राभृतका afधकार है । नैगमनयकी अपेक्षा कर्मप्रकृतिप्राभूतका जानकार त्रिकोटिपरिणाम युक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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