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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, १, ४५.
अण्णं कम्माणं पयडि-हिदि- अणुभाग-पदेसाणं बंधवण्णणं कुणदि । उदीरण वक्कमो पयडिदि-अणुभाग-पदेसाणमुदीरणं परुवेदि । उवसामणोवक्कमो पसत्थोवसामणमप्पसत्थोवसामणं' च पयडि-ट्ठिदि-अणुभाग - पदेस भेदभिण्णं परुवेदि । विपरिणाममुवक्कमो पयडि-विदिअणुभाग-पदेसाणं देसणिज्जरं सयलणिज्जरं च परुवेदि ।
उदयाणिओगद्दारं पयडि-हिदि- अणुभाग-पदेसुदयं परुवेदि | मोक्खे त्ति अणिओगद्दारं पयडि-ट्ठिदि-अणुभाग-पदेसाणं मोक्खं वण्णेदि | मोक्ख विपरिणामोवक्कमाणं को भेदो ? वुच्चदे – विपरिणामोवक्कमो देस - सयलणिज्जराओ परुवेदि | मोक्खो पुण देस-सयलणिज्जराहि परपयडिसंकमोकड्डणुक्कड्डुण-अद्धट्ठिदिगलणेहि पयड-ट्ठिदि - अणुभाग-पदेसभिण्णं मोक्खं वदिति अस्थि भेदो । संकमे त्ति अणियोगद्दारं पयडि-ट्ठिदि - अणुभाग-पदेस संक परुवेदि । लेस्से त्ति अणियोगद्दारं छदव्वलेस्साओ परुवेदि । लेस्सयम्मे त्ति अणियोगद्दारमंतरंगळलेस्सापरिणयजीवाणं बज्झकज्जपरूवणं कुणइ । लेस्सापरिणामेत्ति अणियोगद्दारं जीव- पोग्गलाणं
आठ कर्मों के प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्धका वर्णन करता है । उदीरणोपक्रम अधिकार प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंकी उदीरणाकी प्ररूपणा करता है । उपशामनोपक्रम अधिकार प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशके भेदसे भेदको प्राप्त प्रशस्तोपशामना एयं अप्रशस्तोपशामनाकी प्ररूपणा करता है । विपरिणामोपक्रम अधिकार प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंकी देशनिर्जरा और सकलनिर्जराकी प्ररूपणा करता है ।
उदयानुयोगद्वार प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंके उदयकी प्ररूपणा करता है | मोक्षानुयोगद्वार प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों के मोक्षका वर्णन करता है ।
I
शंका - मोक्ष और विपरिणामोपक्रमके क्या भेद है ?
समाधान - इस शंकाके उत्तर में कहते हैं कि विपरिणामोपक्रम अधिकार देशनिर्जरा और सकलनिर्जराकी प्ररूपणा करता है, परन्तु मोक्षानुयोगद्वार देशनिर्जरा व सकलनिर्जरा के साथ परप्रकृति संक्रमण, अपकर्षण, उत्कर्षण और कालस्थितिगलन से प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बन्धके भेदसे भेदको प्राप्त मोक्षका वर्णन करता है, यह दोनों में भेद है ।
संक्रम अनुयोगद्वार प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंके संक्रमणकी प्ररूपणा करता है । लेश्यानुयोगद्वार छह द्रव्यलेश्याओंकी प्ररूपणा करता है । लेश्याकर्मानुयोगद्वार अन्तरंग छह लेश्याओंसे परिणत जीवोंके बाह्म कार्यकी प्ररूपणा करता है । लेश्यापरि
१ अ आप्रत्योः 'वसामण्णाणं ', ' काप्रतौ ' वसामणाणं ' इति पाठः ।
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