Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ४५.] कदिअणियोगदारे सुत्तावयरणे . दव्व-भावलेस्साहि परिणमणविहाणं वण्णेदि । सादमसादे त्ति अणियोगद्दारमेयंतसाद-अणेयंतसादमेयंतासादमणेयंतासादाणं' गदियादिमग्गणाओ अस्सिदूण परूवणं कुणइ । दीहेरहस्से त्ति अणियोगद्दार पयडि-ट्ठिदि-अणुभाग-पदेसे अस्सिदूण दीह-रहस्सत्तं परुवेदि । भवधारणीए त्ति अणियोगद्दार केण कम्मेण णेरइय-तिरिक्ख-मणुस-देवभवा धरिज्जति त्ति परूवेदि । पोग्गलअत्ते त्ति अणियोगद्दार गहणादो अत्ता पोग्गला परिणामदो अत्ता पोग्गला उवभोगदो अत्ता पोग्गला आहारदो अत्ता पोग्गला ममत्तादो अत्ता पोग्गला परिग्गहादो अत्ता पोग्गला त्ति अप्पणिज्जाणप्पणिज्जपोग्गलाणं पोग्गलाणं संबंधण पोग्गलतं पत्तजीवाणं च परूवणं कुणदि । णिधत्तमणिधत्तमिदि अणियोगद्दारं पयडि-द्विदि-अणुभागाणं णिवत्तमणिधत्तं च परूवेदि । णिवत्तमिदि किं ? ज पदेसग्गं ण सक्कमुदए दाईं अण्णपयडिं वा संकामेदं तं णिवत्तं णाम । तविवरीयमणिधत्तं । णिकाचिदमणिकाचिदमिदि अणियोगद्दारं पयडि-हिदि-अणुभागाणं
णामानुयोगद्वार जीव और पुद्गलोंके द्रव्य और भाव लेश्या रूपसे परिणमन करने के विधानका वर्णन करता है।
सातासातानुयोगद्वार एकान्त सात, अनेकान्त सात, एकान्त असात और अनेकान्त असातकी गति आदि मार्गणाओंका आश्रय करके प्ररूपणा करता है। दीर्घ-हस्वानुयोगद्वार प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंका आश्रय करके दीर्घता और ह्रस्वताकी प्ररूपणा करता है । भवधारणीय अनुयोगद्वार किस कर्मसे नारकी पर्याय, किस कर्मसे तिर्यंच पर्याय, किस कर्मसे मनुष्य पर्याय और किस कर्मसे देव पर्याय धारण की जाती है, इसकी प्ररूपणा करता है। पुद्गलात्त अनुयोगद्वार ग्रहणसे आत्त पुद्गल, परिणामसे आत्त पुद्गल, उपभोगसे आत्त पुद्गल, आहारसे आत्त पुद्गल, ममत्वसे आत्त पुद्गल और परिग्रहसे आत्त पुद्गल, इस प्रकार विवक्षित और अविवक्षित पुद्गलोका तथा पुद्गलोंके सम्बन्धसे पुद्गलत्वको प्राप्त जीवोंकी भी प्ररूपणा करता है। निधत्तानिधत्त अनुयोगद्वार प्रकृति, स्थिति और अनुभागके निधत्त एवं अनिधत्तकी प्ररूपणा करता है।
शंका-निधत्त किसे कहते हैं ?
समाधान - जो प्रदेशाग्र उदयमें देनेके लिये अथवा अन्य प्रकृति रूप परिणमानेके लिये शक्य नहीं है वह निधत्त कहलाता है। इससे विपरीत अनिधत्त है।
निकाचितानिकाचित अनुयोगद्वार प्रकृति, स्थिति और अनुभागके निकाचन और
१ प्रतिषु ' -अणेयततोदाणं ' इति पाठः ।
२ प्रतिषु ' ममत्तीदो' इति पाठः।
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