Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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[२३॥
१, १, ४५.] कदिअणियोगद्दारे सुत्तावयरणं परूवणा कीरदे । जं तं बंधणं तं चउव्विहो बंधो बंधगा बंधणिज्जं बंधविधाणमिदि । तत्थ बंधो जीव-कम्मपदेसाणं सादियमणादियं च बंध वण्णेदि । बंधगाहियारो अट्ठविहकम्मबंधगे परुवेदि । सो च खुद्दाबंधे परूविदो । बंधणिज्ज बंधपाओग्ग-तदपाओग्गपोग्गलदवं परूवेदि । बंधविहाणं पयडिबंधं विदिबंध अणुभागबंध पदेसबंधं च परूवेदि ।
णिबंधणं मूलुत्तरपयडीण णिबंधणं वण्णेदि । जहा चक्खिदियं रूवम्मि णिबद्धं, सोदिंदियं सद्दम्मि णिबद्धं, पाणिंदियं गंधम्मि णिबद्धं, जिभिदियं रसम्मि णिबद्धं, पासिंदियं कक्खदादिपासेसु णिबद्धं, तहा इमाओ पयडीओ एदेसु अत्थेसु णिबद्धाओ ति णिपंधणं परूवेदि, एसो भावत्थो ।
पक्कमे त्ति अणियोगद्दारं अकम्मसरूवेण द्विदाणं कम्मइयवग्गणाखंधाणं मूलुत्तरपयडिसरूवेण परिणममाणाणं पयडि-ट्ठिदि-अणुभागविसेसेण विसिट्ठाणं पदेसपरूवणं कुणदि ।
उवक्कमे त्ति अणियोगद्दारस्स चत्तारि अहियारा बंधणोवक्कमो उदीरणोवक्कमो उवसामणोवक्कमो विपरिणामोवक्कमो चेदि । तत्थ बंधोवक्कमो बंधविदियसमयप्पहुडि
जो बन्धन अनुयोगद्वार है वह बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बन्धविधान इस तरह चार प्रकार है। उनमें बन्ध अधिकार जीव और कर्मकें प्रदेशोंके सादि व अनादि बन्धका वर्णन करता है। बन्धक अधिकार आठ प्रकारके कर्मोको बांधनेवाले जीवोंकी प्ररूपणा करता है । उसकी क्षुद्रकबन्धमें प्ररूपणा की जा चुकी है। बन्धनीय अधिकार बन्धके योग्य और उसके अयोग्य पुद्गल द्रव्यकी प्ररूपणा करता है। बन्धविधान प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्धकी प्ररूपणा करता है ।
निबन्धन अनुयोगद्वार मूल और उत्तर प्रकृतियोंके निबन्धनका वर्णन करता है। जैसे चक्षु इन्द्रिय रूपमें निबद्ध है, श्रोत्र इन्द्रिय शब्दमें निबद्ध है, घ्राण इन्द्रिय गम्धमें निबद्ध है, जिह्वा इन्द्रिय रसमें निबद्ध है और स्पर्श इन्द्रिय कर्कषादि स्पों में निबद्ध है। उसी प्रकार ये प्रकृतियां इन अर्थोंमें निबद्ध हैं, इस प्रकार निबन्धनकी प्ररूपणा करता है; यह भावार्थ है।
प्रक्रम अनुयोगद्वार अकर्म स्वरूपसे स्थित, मूल व उत्तर प्रकृतियोंके स्वरूपसे परिणमन करनेवाले, तथा प्रकृति, स्थिति व अनुभागके भेदसे विशेषताको प्राप्त हुए कार्मणवर्गणास्कन्धोंके प्रदेशोंकी प्ररूपणा करता है।
__ उपक्रम अनुयोगद्वारके बन्धनोपक्रम, उदीरणोपक्रम, उपशामनोपक्रम और विपरिणामोपक्रम,ये चार अधिकार हैं। उनमें बन्धोपक्रम अधिकार बन्धके द्वितीय समयसे लेकर छ. क. ३..
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