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४, १,४५. ]
कदिअणियोगद्दारे सुत्तावयरणं
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अत्र अग्रायणेन अधिकारः, तत्र महाकर्मप्रकृतिप्राभृतस्यावस्थानात् । एत्थ अग्गेणियस पुव्वस्स चदुहि पयारेहि अवयारो होदि । तं जहा- णाम - ट्ठवणा- दव्व-भावभेएण चव्विमग्गेणियं । तत्थ आदिल्ला तिणि विणिक्खेवा दव्वङियणयणिबंधणा, धउविएण विणा तेसिं सरूवोवलंभाभावादो | भावणिक्खेवो पज्जवट्ठियणयणिबंधणो, वट्टमाणपज्जाएण पडिगददव्वस्स भावत्तब्भुवगमादा । णिक्खेवट्ठो वुच्चदे - अग्गेणियसदे। बज्झत्थं मोत्तूण अप्पाणम्हि वट्टमाणो णामग्गेणियं । सो एसो त्ति बुद्धीए' अग्गेणिएण पत्तेयत्तट्ठो ववणाअग्गेणियं । दव्वग्गेणियमागम - णोआगमभेएण दुविहं । तत्थ अग्गेणियपुव्वहरो अणुवजुत्ता आगमदव्वग्गेणियं । णोआगमदव्वग्गेणियं जाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तग्गेणियभेएण तिविहं । तत्थ जाणुगसरीर-भवियणोआगम दव्वग्गेणियदुगं सुगमं, बहुसो उत्तत्थादो | तव्वदित्ति - णोआगमदव्वग्गेणियमग्गेणियसद्दागमो तक्कारणदव्वाणि वा । भावग्गेणियं दुविहं आगमणोआगमभेएण' । तत्थ अग्गेणियपुव्वहरो उवजुत्तो आगमभावग्गेणियं । अग्गेणियपुव्वत्थविसओ केवलोहि-मणपज्जवणाणावयोगो णोआगमभावग्गेणियं । एत्थ दव्वट्ठियणयं पच्च
यहां अग्रायणपूर्वका अधिकार है, क्योंकि, उसमें महाकर्मप्रकृतिप्राभृतका अवस्थान है। यहां अग्रायणीयपूर्वका चार प्रकारसे अवतार होता है । वह इस प्रकार है- नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेद से अग्रायणीयपूर्व चार प्रकार है। इनमें आदिके तीन निक्षेप द्रव्यार्थिकनयके निमित्त से हैं, क्योंकि, धौव्य के विना उनका स्वरूप नहीं पाया जाता । भाषनिक्षेप पर्यायार्थिकनयके निमित्तले होनेवाला है, क्योंकि, वर्तमान पर्यायले युक्त द्रव्यको भाव माना गया है । निक्षेपका अर्थ कहते हैं— बाह्यार्थको छोड़कर अपने आपमें रहनेवाला अग्रायणीय शब्द नामअग्रायणीय है । ' वह यह है ' इस बुद्धिसे अग्रायणीयके साथ एकताको प्राप्त पदार्थ स्थापनाअग्रायणीय है । द्रव्यअग्रायणीय आगम और नोआगमके भेद से दो प्रकार है। उनमें अग्रायणीयपूर्वधारक उपयोग से रहित जीव आगमद्रव्य अग्रायणीय है । नोआगमद्रव्य अग्रायणीय ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त अग्रायणीयके भेद से तीन प्रकार है । उनमें ज्ञायकशरीर और भावी नोआगमद्रव्य अग्रायणीय ये दो सुगम हैं, क्योंकि, बहुत बार उनका अर्थ कहा जा चुका है । अप्रायणीय रूप शब्दागम अथवा उसके कारणभूत द्रव्य तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्य अग्रायणीय है । भावअग्रायणीय आगम और नोआगम भावअग्रायणीयके भेद से दो प्रकार है । उनमें अग्रायणीपूर्वका धारक उपयोग युक्त जीव आगमभावअग्रायणीय कहलाता है । अग्रायणीय पूर्वके अर्थको विषय करनेवाला केवलज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान रूप उपयोग नोआगमभाव अग्रायणीय है । यहां द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा करके तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्य अग्रायणीय और अक्षर
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१ प्रतिषु ' बुद्धी ' इति पाठः ।
ख. क २९.
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३ अ-काप्रत्योः ' भावेण ' इति पाठः ।
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