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४, १, १५.] कदिअणियोगद्दारे णयपरूवणा
[१६९ बाह्यार्थः सम्यक्त्व-विरत्यप्रमादाकषायायोगाश्च' मोक्षकारणम् । सर्वं वस्तु पंचविधं वा औदयिकौपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभेदैः। सर्व वस्तु षड्विधं वा जीव-पुद्गलधर्माधर्म-कालाकाशभेदैः। सर्व वस्तु सप्तविधं वा बद्ध-मुक्तजीव-पद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशभेदैः । सर्व वस्तु अष्टविधं वा भव्याभव्य-मुक्तजीव-पुद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशभेदैः (सर्व वस्तु नवविधं वा जीवाजीव-पुण्य-पापास्रव-संवर-निर्जर-बन्ध-मोक्षभेदैः । सर्व वस्तु दशविध वा एक-द्वि-त्रि-चतुः-पंचेन्द्रियजीव-पुद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशभेदैः। सर्व वस्त्वेकादशविधं वा पृथिव्यप्तेजो-वायु-वनस्पति-त्रसजीव-पुद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशभेदैः । एवमेकाघेकोत्तरक्रमेण बहिरंगान्तरंगधर्मिणौ विपाट्येते यावदविभागप्रतिच्छेदं प्राप्ताविति । एष सर्वोऽप्यनन्त
अप्रमाद, अकषाय एवं अयोग मोक्षकारण हैं ।
अथवा सब वस्तु औदयिक, औपशमिक, क्षायिक,क्षायोपशमिक और पारिणामिकके भेदसे पांच प्रकार है । अथवा सब वस्तु जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाशके भेदसे छह प्रकार है । अथवा सब वस्तु बद्ध जीव, मुक्त जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाशके भेदसे सात प्रकार है । अथवा सब वस्तु भव्य, अभव्य, मुक्त जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाशके भेदसे आठ प्रकार है। अथवा सब वस्तु जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्षके भेदसे नौ प्रकार है । अथवा सब वस्तु एकेन्द्रिय जीव, द्वीन्द्रिय जीव, त्रीन्द्रिय जीव, चतुरिन्द्रिय जीव, पंचेन्द्रिय जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाशके भेदसे दस प्रकार है। अथवा सब वस्तु पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक,वायुकायिक, वनस्पतिकायिक,त्रस जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाशके भेदसे ग्यारह प्रकार है । इस प्रकार एकको लेकर एक अधिक क्रमसे बहिरंग व अंतरंग धर्मियोंका विभाग करना चाहिये जब तक कि अविभागप्रतिच्छेदको प्राप्त नहीं होते हैं । इस प्रकार सभी अनन्त भेद रूप संग्रहप्रस्तार नित्य व
१ प्रतिषु -प्रमादकषायायोगाश्च' इति पाठः।
२ जीवद्रव्यं त्रिविधं भष्याभव्यानुभयभेदेन, अजीवद्रव्यं द्विविधं मूर्तीमूर्तभेदेन, एवं पंचविधं वा द्रव्यम् । जीव-पुद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशभेदेन षड्विधं वा । जीवाजीवास्रव-संवर-निर्जरा-बन्ध-मोक्षभेदेन सप्तविधं वा । जीवाजीव-कर्मास्रव-संवर-निर्जरा-बन्ध-मोक्षभेदेनाष्टविधं वा । जीवाजीव-पुण्य-पापासव-संबर-निर्जर-बन्ध-मोक्षभेदेन नवविधं वा । एक-द्वि-त्रि-चतुः-पंचेन्द्रिय-पुद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशभेदेन दशविधं वा । पृथिव्यप्तेजो-वायु-वनस्पतित्रस-पुद्गल-धर्माधर्मा-कालाकाशभेदेनैकादशविधं . वा । पृथिव्यप्तेजोवायु-वनस्पति-समनस्कामनस्क-त्रस-पुद्गलधर्माधर्म-कालाकाशभेदेन द्वादशविधं वा । जीवद्रव्यं त्रिविधं भव्याभव्यानुभयभेदेन, पुद्गलद्रव्यं षड्विधं बादरबादरबादर-बादरसूक्ष्म-सूक्ष्मबादर-सूक्ष्म-सूक्ष्मसूक्ष्मं चेति । xxx शेषद्रव्याणि चत्वारि धर्माधर्म-कालाकाशभेदेन । एवं । त्रयोदशविधं वा द्रव्यम् । एवमेतेन क्रमेण जीवाजीवद्रव्याणां भेदः कर्तव्यः यावदन्त्यविकल्प इति । जयच.१, पृ. २१४-१५. क. क. २२.
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