________________
४, १,४५. ]
कदिअणियोगद्दारे णयपरूवणा
[ १७५
मनवयवं सकलावयवव्याप्युपलभ्यते । ततो न द्रव्य - पर्याया विविक्तशक्तयः सन्ति । न तेषामेकमधिकरणं स्वस्मिन्नवस्थितत्वात् । किं च, 'न विनाशोऽन्यतो जायते, तस्य जातिहेतुत्वात् । अत्रोपयोगी लेक:
जातिरेव हि भावानां निरोधे हेतुरिष्यते ।
यो जातश्च न च ध्वस्तो नश्यते पश्चात् स केन वः ॥ ५७ ॥
न च भावः अभावस्य हेतुः घटादपि खरविषाणोत्पत्तिप्रसंगात् । किं च न वस्तु परतो विनश्यति, परसन्निधानाभावे तस्याविनाशप्रसंगात् । अस्तु चेन्न, अक्षणिकेऽर्थक्रियाविरोधात् । किं च, न पलालो दह्यते, पलालाग्निसम्बन्धसमनन्तरमेव पलालस्य नैरात्म्यानुपलम्भात् । न द्वितीयादिक्षणेषु पलालस्य नैरात्म्यकृदग्निसम्बन्धः, तस्य तत्कार्यत्वप्रसंगात् । न पलालावयवी दह्यते, तस्यासत्वात् । नावयवा दह्यन्ते, निरवयवत्वतस्तेषामप्यसत्वात् । न
निरवयव और समस्त अवयवोंमें रहनेवाला द्रव्य पाया नहीं जाता । अत एव भिन्न भिन्न शक्तियुक्त द्रव्य व पर्यायें नहीं है । इसीलिये उनका एक अधिकरण नहीं है; क्योंकि, वे अपने आपमें स्थित हैं ।
और भी, इस नयकी अपेक्षा विनाश किसी अन्य पदार्थके निमित्तसे नहीं होता, क्योंकि, उसका हेतु उत्पत्ति ही है । यहां उपयोगी श्लोक -
---
पदार्थोंके विनाशमें जाति अर्थात् उत्पत्ति ही कारण मानी जाती है, क्योंकि, जो पदार्थ उत्पन्न होते ही नष्ट नहीं होता तो फिर वह पश्चात् आपके यहां किसके द्वारा नष्ट होगा ? अर्थात् किसीके द्वारा नष्ट नहीं हो सकेगा ॥ ५७ ॥
दूसरे, भाव अभावका हेतु नहीं हो सकता, क्योंकि, ऐसा माननेपर घटसे भी गधेके सींगोंके उत्पन्न होनेका प्रसंग आवेगा । तथा वस्तु परके निमित्तसे नष्ट नहीं होती, क्योंकि, वैसा होनेपर परकी समीपताके अभाव में उसके अविनाशका प्रसंग आवेगा । यदि कहा जाय कि नाश न भी हो, सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, नित्य होनेपर अर्थक्रियाका विरोध होगा ।
इस नयकी दृष्टिमें पलाल (पुआल ) का दाह नहीं होता, क्योंकि, पलाल और अग्निके सम्बन्धके अनन्तर ही पलालकी निरात्मता अर्थात् शून्यता नहीं पायी जाती । द्वितीयादि क्षणों में पलालकी निरात्मताको करनेवाला अग्निका सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि, उसके होनेपर पलालकी निरात्मताको उसके कार्य होनेका प्रसंग आवेगा [ जो उस समय नहीं है ] । पलाल अवयवीका दाह नहीं होता, क्योंकि, अवयवीकी [ आपके यहां ] सत्ता ही नहीं । न अवयव जलते हैं, क्योंकि, स्वयं निरवयव होनेसे उनका
Jain Education International
१ नवध. १, पृ. २२६.
२ त. रा. १, ३३, ७.
For Private & Personal Use Only
v.jainelibrary.org
www.