Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१७६] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, १, ४५. पलालोत्पत्तिक्षण एवाग्निसम्बन्धस्तस्यानुत्पत्तिप्रसंगात् । नोत्तरक्षणे, असत्तासम्बन्धविरोधात् । किं च यः पलालो न स दह्यते, तत्रामिसम्बन्धजनितातिशयान्तराभावात् , भावे वा न स पलालप्राप्तोऽन्यस्वरूपत्वात् । 'न शुक्लः कृष्णीभवति, उभयोभिन्नकालावस्थितत्वात् प्रत्युत्पन्नविषये निवृत्तपर्यायानभिसम्बन्धात् । एवमृजुसूत्रनयस्वरूपनिरूपणं कृतम् ।
शपत्यर्थमाह्वयति प्रत्यायतीति शब्दः । अयन्नयः लिंग-संख्या-काल-कारक पुरुषोपग्रहव्यभिचारनिवृत्तिपरः । लिंगव्यभिचारस्तावत् स्त्रीलिंगे पुल्लिंगाभिधानम् - तारका स्वातिरिति । पुल्लिंगे स्न्यभिधानम् - अवगमो विद्येति । स्त्रीत्वे नपुंसकाभिधानम् - वीणा आतोद्यमिति । नपुंसके स्न्यभिधानम् - आयुधं शक्तिरिति । पुल्लिगे नपुंसकाभिधानम
भी असत्व है । यदि कहा जाय कि पलालकी उत्पत्तिक्षण में ही अग्निका सम्बन्ध हो ज नाता है, अतः वह जल सकता है। सो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि, ऐसा माननेपर अग्निका सम्बन्ध होनेसे वह उत्पन्न ही न हो सकेगा। इसलिये यदि उत्पत्तिके उत्तरक्षणमें अग्निका सम्बन्ध स्वीकार किया जाय तो यह भी सम्भव नहीं है, क्योंकि, उत्पत्तिके द्वितीय क्षणमें पलालकी सत्ता नष्ट हो जानेसे असत्ताके अग्निसम्बन्धका विरोध है। दूसरे, जो पलाल है वह नहीं जलता है, क्योंकि, उसमें अग्निसम्बन्ध जनित अतिशयान्तरका अभाव है। अथवा यदि अतिशयान्तर है भी तो वह पलाल प्राप्त नहीं है, क्योंकि, उसका स्वरूप पलालसे भिन्न है।।
इस नयकी अपेक्षा 'शुक्ल कृष्ण होता है। ऐसा भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि, कृष्ण और शुक्ल दोनों पर्यायें भिन्न काल में रहनेवाली हैं, अतः उत्पन्न हुई कृष्ण पर्यायमें नष्ट हुई शुक्ल पर्यायका सम्बन्ध नहीं हो सकता । इस प्रकार ऋजुसूत्र नयके स्वरूपका निरूपण किया।
जो 'शपति' अर्थात् अर्थको बुलाता है या उसका शान कराता है वह शब्द नय है। यह नय लिंग, वचन, काल, कारक, पुरुष और उपग्रहके व्यभिचारको दूर करनेवाला है। इनमें पहिले लिंगव्यभिचार कहा जाता है- स्त्रीलिंगमें पुल्लिगका कथन करना लिंगव्यभिचार है। जैसे- 'तारका स्वातिः' यहां स्त्रीलिंग तारका शब्दके साथ पुल्लिंग स्वाति शब्दका प्रयोग किया गया है, अतः यह लिंगव्यभिचार है । पुल्लिगमें स्त्रीलिंगका कथन करना । जैसे- ‘अवगमो विद्या' यहां पुल्लिंग अवगम काब्टके साथ स्त्रीलिंग विद्या शब्दका प्रयोग । स्त्रीलिंगमें नपंसकलिंगका कथन करना। जैसे- 'वीणा आतोद्यम् ' यहां स्त्रीलिंग वीणाके लिये नपुंसकलिंग आतोद्य शब्दका प्रयोग । नपुंसकलिंगमें स्त्रीलिंगका कथन करना । जैसे- 'आयुधं शक्तिः' यहां नपुंसकलिंग आयुधके लिये स्त्रीलिंग शक्ति शब्दका प्रयोग। पुल्लिगमें नपुंसकलिंगका कथन करना।
१ जयध. १, पृ. २३०. २ त. रा. १, ३३, ८. जयध. १, पृ. २३५.
३ त. रा. १, ३३, ९.
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