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१, १, १५.] कदिअणियोगदारे सुत्तावयरणं
[२१९ वट्टमाणो । सो एसो त्ति एयत्तेण संकप्पियदव्वं ठवणापुव्वगयं । दव्वपुव्वगयं दुविहं आगमणोआगमभेएण। पुव्वमण्णवपारओ अणुवजुत्तो आगमदव्वपुव्वगयं । णोआगमदव्वपुव्वगयं जाणुंगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तभेएण तिविहं । आदिल्लदुर्ग सुगम, बहुसो परूविदत्तादो । पुव्वगयसद्दसंघाओ णोआगमतव्वदिरित्तदव्वपुव्वगय, पुव्वगयकारणत्तादो। भावपुव्वगयमागमणोआगमभेएण दुविहं । चोदसविज्जाठाणपारओ उवजुत्तो आगमभावपुव्वगयं । आगमेण विणा केवलोहि-मणपज्जवणाणेहि पुव्वगयत्थपरिच्छेदओ णोआगमभावपुव्वगयं । . ....
एत्थ केण णिक्खेवेण पयदं ? पज्जवट्ठियणय पडुच्च आगमभावणिक्खेवेण पयदं । दवट्ठियणयं पडुच्च णोआगमतव्वदिरित्तदव्वपुव्वगयेण अक्खरट्ठवणापुव्वगएण च पयदं । णइगमणयं पडुच्च पुव्वगयणाणजणियसंसकारविसिट्ठजीवदव्वस्स गहणं । एवं णिक्खेव-णएहि पुव्वगयस्स अवयारो कद।।
पमाण-पमेयाणं दोणं पि एत्थाणुगमो, करण-कम्मकारएसु अणुगमसद्दणिप्पत्तीदो ।
'वह यह है ' इस प्रकार अभेद रुपसे संकल्पित द्रव्य स्थापनापूर्वगत है। द्रव्यपूर्वगत आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकार है। पूर्वरूप समुद्र के पारको प्राप्त हुआ उपयोग रहित जीव आगमद्रव्यपूर्वगत है । नोआगमद्रव्यपूर्वगत ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है। इनमें आदिके दो सुगम हैं, क्योंकि, उनका बहुत बार निरूपण किया जा चुका है । पूर्वगतका शब्दसमूह नोआगमतद्व्यतिरिक्तद्रव्यपूर्वगत है, क्योंकि, वह पूर्वगतका कारण है । भावपूर्वगत आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकार है । चौदह विद्याओंका जानकार उपयोग युक्त जीव आगमभावपूर्वगत है। आगमके बिना केवलज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञानसे पूर्वगतके अर्थका जाननेवाला नोआगमभावपूर्वगत है।।
शंका-यहां कौनसा निक्षेप प्रकृत है ?
समाधान-पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा आगमभावनिक्षेप प्रकृत है। द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा नोआगमतव्यतिरिक्तद्रव्यपूर्वगत और अक्षरस्थापनापूर्वगत प्रकृत है । नैगम नयकी अपेक्षा पूर्वगतके ज्ञानसे उत्पन्न हुए संस्कारसे विशिष्ट जीव द्रव्यका ग्रहण है।
इस प्रकार निक्षेप और नयसे पूर्वगतका अवतार किया है ।
प्रमाण और प्रमेय दोनोंका ही यहां अनुगम है, क्योंकि, करण और कर्म कारकमें अनुगम शब्द सिद्ध हुआ है । [अर्थात् करणकारकमें सिद्ध हुए अनुगम शब्दसे ज्ञान और कर्मकारक सिद्ध हुए उक्त शब्दसे शेयका ग्रहण होता है।]
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