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१, १, ४५.] कदिअणियोगद्दारे णयपरूवणा
[१७७ पटो वस्त्रमिति । नपुंसके पुल्लिंगाभिधानम् - द्रव्यं परशुरिति ।
संख्याव्यभिचारः । एकत्वे द्वित्वम् - नक्षत्रं पुनर्वसू इदि । एकत्वे बहुत्वम्नक्षत्रं शतभिषजः इति । द्वित्वे एकत्वम् - गोदौ ग्राम इति । द्वित्वे बहुत्वम्- पुनर्वसू पंचतारका इति । बहुत्वे एकत्वम् -- आम्राः वनमिति । बहुत्वे द्वित्वम् - देव-मनुष्याः उभी राशी इति।
कालव्यभिचारः- विश्वदृश्वास्य पुत्रो जनितेति भविष्यदर्थे भूतप्रयोगः। भावि कृत्यमा
जैसे- 'पटो वस्त्रम् यहां पुल्लिग 'पटः' के साथ 'वस्त्रम्' ऐसे नपुंसकलिंग वस्त्र शब्दका प्रयोग। नपुंसकलिंगमें पुल्लिगका कथन करना। जैसे-'द्रव्यं परशुः' यहां नपुंसकलिंग द्रव्य शब्दके साथ पुलिंग परशु शब्दका प्रयोग। [यह सब लिंगव्यभिचार है।]
संख्याव्यभिचार कहा जाता है । एकवचनके स्थानमें द्विवचनका प्रयोग करना संख्याव्यभिचार है। जैसे- 'नक्षत्रं पुनर्वसू' यहां एक वचन 'नक्षत्रम् ' के साथ 'पुनर्वसू' ऐसे द्विवचनका प्रयोग किया गया है । एक वचनके स्थानमें बहुवचनका प्रयोग, जैसे- 'नक्षत्रं शतभिषजः' यहां एक वचन 'नक्षत्रम्' के साथ ‘शतभिषजः' ऐसे बहुवचनका प्रयोग किया गया है । द्विवचनके स्थानमें एकवचनका प्रयोग, जैसे- 'गोदौ ग्रामः' यहां गोदौ' द्विवचनके साथ 'ग्रामः' ऐसे एकवचनका प्रयोग किया गया है। द्विवचनके स्थानमें बहुवचनका प्रयोग, जैसे- 'पुनर्वसू पंचतारकाः ' यहां 'पुनर्वसू' इस द्विवचनके साथ 'पंचतारकाः' ऐसे बहुवचनका प्रयोग किया गया है। बहुवचनके स्थानमें एकवचनका प्रयोग, जैसे'आम्राः वनम् ' यहां 'आम्राः' बहुवचनके साथ 'वनम् ' ऐसे एकवचनका प्रयोग किया गया है । बहुवचनके स्थानमें द्विवचनका प्रयोग, जैसे- 'देव-मनुष्याः उभौ राशी' अर्थात् देव एवं मनुष्य ये दो राशियां हैं, यहां 'देव-मनुष्याः' इस प्रकार बहुवचनके साथ ' उभौ राशी' ऐसे द्विवचनका प्रयोग किया गया है। [यह सब वचनका विपर्यास होनेसे संख्याव्यभिचार है।]
कालव्यभिचार-विवक्षित किसी एक कालके स्थानमें दूसरे कालका प्रयोग करना कालव्यभिचार है। जैसे- 'विश्वदृश्वास्य पुत्रो जनिता' अर्थात् जिसने विश्वको देख लिया है ऐसा इसके पुत्र होगा। यहां भविष्यत्कालीन 'जनिता' क्रियाके साथ भूतकालीन क्रियाके द्योतक 'विश्वदृश्वा' कर्तृपदका प्रयोग किया गया है। 'भावि कृत्यमासीत् ' अर्थात् कार्य होनेवाला ही था । यहां भूतकालीन 'आसीत् ' क्रियाके साथ भविष्यत्कालीन क्रियाके द्योतक 'भावि' पदका 'कृत्य' के विशेषण रूपसे
१ष. खं. पु. १, पृ. ८७.
२ प्रतिषु 'गोधौ' इति पाठः । ३ ष. खं. पु. १, पृ. ८७. जयध. १, पृ. २३६. ४ प्रतिषु 'विश्वदृष्वास्य ' इति पाठः।
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