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छक्खंडागमे वैयणाखंड
।४,१, ४५. प्रकाशितार्थविशेषप्ररूपको नयः इति । प्रकर्षेण मानं प्रमाणम् , सकलादेशीत्यर्थः । तेन प्रकाशितानांप्रमाणपरिगृहीतानामित्यर्थः। तेषामर्थानामस्तित्व-नास्तित्व-नित्यानित्यत्वाद्यनन्तात्मकानां जीवादीनां ये विशेषाः पर्यायाः तेषां प्रकर्षेण रूपकः प्ररूपकः निरुद्धदोषानुषंगद्वारेणेत्यर्थः । अबोधरूपस्याभिप्रायस्य कथं निरुद्धदोषानुषंगद्वारेण पर्यायप्ररूपकत्वम् ? नैष दोषः, द्रव्यपर्यायाभिप्रायोत्थापितवचनयोः द्रव्य-पर्यायनिरूपणात्मकयोः अभिप्रायवतः पुरुषस्य वा नयत्वाभ्युपगमतो दोषाभावात् , अन्यथोक्तदोषानुषंगात् । (तथा प्रभाचन्द्रभट्टारकैरप्यभाणिप्रमाणव्यपाश्रयपरिणामविकल्पवशीकृतार्थविशेषप्ररूपणप्रवणः प्रणिधिर्यः स नय इति । प्रमाणव्यपाश्रयस्तत्परिणामविकल्पवशीकृतानां अर्थविशेषाणां प्ररूपणे प्रवणः प्रणिधान प्रणिधिः प्रयोगो व्यवहारात्मा प्रयोक्ता वा स नयः । स एष याथात्म्योपलब्धिनिमित्तत्वाद् भावानां श्रेयोऽपदेशः'
कहा है। वह इस प्रकार है-प्रमाणसे प्रकाशित जीवादिक पदार्थोकी पर्यायोंका प्ररूपण करनेवाला नय है । इसीको स्पष्ट करते हैं-प्रकर्षसे अर्थात् संशयादिसे रहित वस्तुका शान प्रमाण है, अभिप्राय यह कि जो समस्त धर्मोको विषय करनेवाला हो वह प्रमाण है। उससे प्रकाशित अर्थात् प्रमाणसे गृहीत उन अस्तित्व-नास्तित्व व नित्यत्व-अनित्यत्वादि अनन्त धर्मात्मक जीवादिक पदार्थों के जो विशेष अर्थात् पर्याये हैं उनका प्रकर्षसे अर्थात् दोषोंके सम्बन्धसे रहित होकर निरूपण करनेवाला नय है ।
शंका-अबोधरूप अभिप्राय संशयादि दोषोंसे रहित होकर जीवादिक पदार्थोकी पर्यायोंका निरूपक कैसे हो सकता है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, द्रव्य और पर्यायके अभिप्रायसे उत्पन्न द्रव्य-पर्यायके निरूपणात्मक वचनोंको अथवा अभिप्रायवान् पुरुषको नय माननेसे कोई दोष नहीं आता, ऐसा न माननेपर उपर्युक्त दोषका प्रसंग आता है।
तथा प्रभाचन्द्र भट्टारकने भी कहा है-प्रमाणके आश्रित परिणामभेदोंसे वशीकृत पदार्थविशेषोंके प्ररूपणमें समर्थ जो प्रयोग होता है वह नय है। उसीको स्पष्ट करते हैं-जो प्रमाणके आश्रित है तथा उसके आश्रयसे होनेवाले ज्ञाताके भिन्न भिन्न अभिप्रायोंके आधीन हुए पदार्थविशेषोंके प्ररूपणमें समर्थ है ऐसे प्रणिधान अर्थात् प्रयोग अथवा व्यवहार स्वरूप प्रयोक्ताका नाम नय है । वह यह नय पदार्थोके यथार्थ परिज्ञानका निमित्त होनेसे मोक्षका कारण है । यहां श्रेयस् शब्दका अर्थ मोक्ष और अपदेश शब्दका अर्थ
१त. रा, १,३३, १. तत्र सकलादेशीत्यर्थः ' इत्येतस्य स्थाने ' सकलादेश इत्यर्थः ' इति पाठः, 'तेन प्रकाशितानाम् ' अतोऽग्रे तत्र 'न प्रमाणाभासपरिगृहीतानामित्यर्थः' इत्यधिकः पाठः । जयध, १, पृ.२१०.
२ जयध. १, पृ. २१०.
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